ये पत्रकार कैसे होते हैं कुछ भी छाप देते है… ये कहीं भी पहुंच जाते हैं, इनका कोई भरोसा नहीं होता है… ये पत्रकार चापलूस होते हैं…
इस तरह की बातों का पत्रकारों को हर रोज सामना करना पड़ता है। जब कोई रिपोर्टर फील्ड पर निकलता है तो दस लोग उसे बुरा-भला कहते हैं और चुनिन्दा लोगों के मुंह से ही पत्रकारों के लिए वाह वाही सुनाई पड़ती है। हर दर्द और खबर को अपनी खबर बनाने वाले पत्रकारों को हर रोज इन बातों का सामना करना होता है। पत्रकार आप तक हर खबर पहुंचाने के लिए कितने दिन-रात और खून पसीना एक करते हैं, इस बात को शायद एक पत्रकार ही समझ सकता है।
खैर हम यहां पत्रकारों की तारीफ के पुल बांधना नहीं चाहते है। बस उन पत्रकारों के बारे में बताना चाहते हैं जो खबर की कवरेज कर आप तक पहुंचाने के लिए अपनी जिंदगी भी जोखिम में डाल देते हैं। अपनी किसी कवरेज में उन्हें पत्थर खाने पड़ते हैं तो कहीं वे अपशब्दों का सामना करते हैं। चलिए आज हम कुछ ऐसे ही पत्रकारों से आपको रू-ब-रू कराते हैं।
बरखा दत्त, कारगिल की पहली महिला रिपोर्टर- जर्नलिज्म की दुनिया में बरखा दत्त का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। हौसलों से भरपूर बरखा दत्त पहली महिला हैं जिन्होंने बिना खतरों से डरे कारगिल युद्ध की कवरेज की थी। पिछले साल हुए मुंबई के आतंकी हमलों में भी वह निडर होकर लाइव कवरेज कर पल-पल की खबर देती रहीं।
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आलोक कुमार तोमर, 1984 में सिख दंगों की रिपोर्टिंग- सिख दंगों को आज तक कोई भुला नहीं पाया है। उसमें कई मासूमों और बेगुनाहों ने जान गंवाई थी। इस घटना की कवरेज करने वाले पत्रकार आलोक कुमार तोमर को भी जान से हाथ धोना पड़ा। आज भले ही पत्रकार आलोक हम सब के बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन उन दंगों में की गई रिपोर्टिंग ने उन्हें अमर बना दिया।
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राजदीप सरदेसाई, गुजरात दंगे- देश के जाने-माने पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने गुजरात दंगों की रिपोर्टिंग की थी। इस घटना पर राजदीप सरदेसाई का कहना है कि “इस दौरान रिपोर्टिंग करना मानों शेर के मुंह में हाथ डालने के बराबर था। उस वक्त खून से लथ-पथ और हाथ में हथियार लिए लोग दूसरों के खून के प्यासे थे।”
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मिड डे के रिपोर्टर की गोली मार कर हत्या- मुंबई के प्रमुख अंग्रेजी अखबार मिड डे के एक वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय की उन्हीं के घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। ज्योतिर्मय के पास अंडरवर्ल्ड के बारे में कई अहम जानकारियां होती थी।
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पत्रकारिता को हमारे देश में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट के अनुसार 1992 से दुनिया भर में अब तक 1189 पत्रकारों की मौत हुई है। आज पत्रकारिता के समाज में मायने भले ही कुछ हद तक बदल गए हैं, लेकिन आज भी आप तक खबर पहुंचाने वाले को पत्रकार कहते हैं।