बॉलीवुड की कई फिल्मों में हम बचपन से ही देखते आए हैं कि एक बच्चा कुंभ के मेले में अपने परिवार से बिछड़ जाता है। फिल्म इसी कहानी से शुरू होती है और फिर अंत में सब मिल जाते हैं। फिल्म की कहानी की तरह ही एक व्यक्ति करीब 68 सालों से मेले के दौरान खो जाने वाले लोगों को मिलाने का काम कर रहा है। इस काम को करने से उस व्यक्ति को एक अलग ही खुशी और शांति का एहसास होता है। धरती पर बिछड़े लोगों को मिलाने वाले इस खुदा के बंदे को किसी तरह का कोई लालच नहीं है। इस तरह के सराहनीय काम के लिए इलाहाबाद के राजा राम तिवारी को कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है।
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हाल ही के दिनों में आई बजरंगी भाईजान फिल्म में सलमान खान अपने परिवार से बिछड़ी बच्ची को वापस उसके घर पहुंचाने के लिए पाकिस्तान तक जाते दिखाए गए हैं। वाकई में अपने परिवार से बिछड़ कर ऐसा लगता है मानों आप इस अंजान दुनिया में पहली बार ही आए हों। कोई समझदार तो फिर भी अपने गांव, मोहल्ले के बारे में बता देता है, परन्तु सबसे ज्यादा डर तो मासूम बच्चों को लगता है जब वो भरी भीड़ में अपनी मां का चेहरा नहीं देख पाते हैं। वो बच्चा हर नए चेहरे पर अपनी मां के चेहरे को नहीं देखकर भयभीत हो जाता है और दुनिया में खुद को अकेला पाकर रोने लगता है। उस समय उस बच्चे को सिर्फ किसी खुदा के बंदे की ही तलाश रहती है जो इस भीड़ में उसे अपनी मां से मिला दे।
इलाहबाद में लगने वाले माघ मेले में 86 वर्षीय राजाराम तिवारी ऐसे ही खुदा के बंदे होने का किरदार बड़ी ही सफलता और निस्छल भाव से निभा रहे हैं। पिछले करीब 68 सालों से राजाराम तिवारी यही काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ निवासी राजाराम तिवारी सोलह साल की आयु में कुंभ मेले में घूमने आए थे। इस मेले में उन्हें एक बुजुर्ग महिला मिली जो अपने परिवार से बिछड़ गई थी।
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उस समय इस प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं थी कि बिछड़े लोगों को आसानी से मिलाया जा सके। इस पर भी राजाराम तिवारी ने अपने सामर्थ्य से पूरी मेहनत कर यह पता ही लगा लिया कि उस बुजुर्ग महिला के परिवार वाले कहां रुके हैं।
इस घटना के बाद से ही उनकी जिंदगी में बदलाव आया और उन्होंने ठान लिया कि अब वो इसी तरह बिछड़े लोगों को मिलाने का काम करेंगे।
शिविर की शुरूआत 1946 में-
राजा राम तिवारी ने 18 वर्ष की आयु में साल 1946 में गंगा के तट भूले-भटके शिविर के नाम से शिविर की शुरूआत की।
इस मेले में अगर कोई बच्चा या बुजुर्ग खो जाए तो उसको इसी शिविर में भेजा जाता है।
शिविर में संबंधित व्यक्ति की पूरी जानकारी लेकर मेले में अनाउंसमेंट करवाई जाती है।
अनाउंसमेंट के बाद भी बिछड़ा व्यक्ति न मिलने पर खोजने की व्यवस्था और तेजी से की जाती है।
पहले राजा राम नौ लोगों की टीम के सहयोग से मेले में दिनभर पैदल घूमकर भूले-भटकों को मिलाते थे।
राजा राम तिवारी के इस कार्य को जिला प्रशासन ने कई बार पुरस्कृत भी किया है।
इस मेले में राजा राम तिवारी के बेटे उमेश तिवारी उनकी मदद करते हैं।
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कारवां शुरू हुआ और जुड़ते गए कई लोग।
राजा राम तिवारी का मानना है कि पहले के मुकाबले अधिक लोग ऐसे कार्यों से जुड़ने लगे हैं।
लोगों को सामाजिक कार्य करना पसंद आने लगा है।
भूले-भटके इस शिविर में हिंदी न जानने वालों के लिए क्षेत्रीय भाषा के जानकार भी शामिल किए जाते हैं। जिससे खोने वाले शख्स के बारे में सही जानकारी मिल सके।
इस काम के लिए राजा राम तिवारी का नाम पूरे देश में होने लगा है। साथ ही इस काम को करने से उन्हें एक अलग सी खुशी मिलती है। आस पास के क्षेत्र में राजा राम तिवारी को सम्मानित व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। साथ ही इनको कई लोग जानते हैं। बिछड़े हुए लोगों को मिलाने के लिए इन्हें भूले भटके वाले तिवारी जी के नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय प्रशासन के अलावा हाल ही में अपने एक शो में अमिताभ बच्चन ने भी इन्हें सम्मानित किया था।