केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की रोक पर काफी बवाल मचा हुआ है। यहां के फैसले के अनुसार तरुण अवस्था में पहुंचने वाली लड़कियों पर रोक लगाई गई थी। जिस पर काफी विरोध करने के बाद इसके खिलाफ याचिका दायर की गई। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिन्दू सिर्फ़ हिन्दू होता है। उसमें स्त्री या पुरुष के बीच किसी भी प्रकार का फर्क नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया कि मंदिर में सभी लोगों को जाने की अनुमति प्रदान की गई है और हमारे संविधान में भी इस प्रकार के भेदभाव को नहीं रखा गया है तो इस प्रकार से किसी को मंदिर में प्रवेश से यह कहकर नहीं रोका जा सकता कि वह महिला है।
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सोमवार को इस मामले की सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया था कि क्या कोई भी रीति रिवाज या परंपरा संविधान के बनाये गये अधिकारों से ऊंची है। संवैधानिक नजरिये से देखा जाए तो लिंग के आधार पर किये जाने वाले भेदभाव की मंजूरी किसी को नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर ट्रस्ट से यह भी सवाल किया कि वे सभी लोग बतायें कि संवैधानिक तौर पर यह कैसे स्वीकार किया जाए कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाए। हमारे देश में मां को सबसे ऊंचा दर्जा दिया जाता रहा है। जहां पर गुरु, पिता या फिर कोई श्रेष्ठ भी क्यों ना बैठा हो पर सबसे पहले मां को ही पूजा जाता है फिर अन्य किसी श्रेष्ठ को। इसलिये कोई भी कानून लिंग के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव करने की इजाजत नहीं देता। इसलिये इस प्रकार से लिया गया निर्णय खतरनाक साबित हो सकता है।