ये रहे चम्बल के असली गब्बर सिंह

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अभिनेता अमजद खान ने डाकू गब्बर सिंह के किरदार को हमेशा के लिए भारतीय फिल्म इंड्रस्टी में अमर कर दिया। गब्बर सिंह के अभिनय का हर अंदाज़ लोगों के जहन में सहज ही बस गया। चाहे उसके चलने-फिरने का तरीका हो या तंबाकू मलने का। शोले फिल्म से लोगों को एक नया डाकू मिला था “गब्बर सिंह”, जो कि बहुत हिंसक ही नहीं बल्कि खतरनाक भी था। यह तो रही फिल्म वाले गब्बर की बात, लेकिन यहां हम आपको रियल गब्बर सिंह के बारे में बताने जा रहे हैं।

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1950 से 1960 के दशक में गब्बर सिंह नाम का एक रियल डाकू था। जिसका आतंक चम्बल के बीहड़ों में वैसा ही था जैसा आपने फिल्म “शोले” में देखा है। मध्य प्रदेश के चम्बल के बीहड़ों का राजा माना जाने वाला यह डाकू गब्बर सिंह ही वह डाकू था जिसका किरदार फिल्म शोले में “अमजद खान” ने निभाया है। बताया जाता है कि 1950 से 1960 के दशक में जैसा आतंक गब्बर सिंह का था उससे ही प्रभावित होकर शोले फिल्म में “गब्बर सिंह” के किरदार को रखा गया था।

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असली गब्बर सिंह की आदत बहुत ही अजीब और खतरनाक थी। बहुत ही कम लोग जानते हैं कि गब्बर सिंह पकड़े गए लोगों की नाक काट लेता था। एक रिकॉर्ड के मुताबिक गब्बर ने अपने इलाके के 160 से भी ज्यादा लोगों की नाक काट ली थी।

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कैसे हुई थी गब्बर की मौत –
गब्बर की मौत की बात करें तो उसकी और उसके गैंग के लोगों की मौत एनकाउंटर में हुई थी। यह एनकाउंटर गब्बर के कार्यकाल में ही किया गया था। गब्बर सिंह का एनकाउंटर “केएफ रुस्तमजी” ने किया था, जो तत्कालीन IPS थे। आपको बता दें कि पद्म विभूषण अवॉर्ड पाने वाले एक मात्र पुलिस ऑफिसर “केएफ रुस्तमजी” ही हैं। केएफ रुस्तमजी 6 साल से ज्यादा समय तक तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मुख्य सुरक्षा अधिकारी भी रहे। इसके अलावा इंडो-तिब्बत फ़ोर्स की स्थापना में उनकी मुख्य भूमिका भी रही है। आपको बता दें कि केएफ रुस्तमजी के नाम पर बीएसएफ हर साल मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित कराती है।

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केएफ रुस्तमजी ने 13 नवंबर 1959 को “गम का पुरा” नामक गांव में गब्बर सिंह का एनकाउंटर किया था, यह गांव चम्बल में नेशनल हाईवे के पास है।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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