मलाला एक नन्हीं सी किरण जिसने एक अकेले लड़कर अपने कौम को ही नहीं पूरे देश को एक नई रोशनी दी है। उसकी ताकत को देखकर आज पूरे देश के लोग उसके सामर्थ्य को नमन करते हुए कहते हैं कि मलाला यूसुफजई शक्ति की एक अजब मिसाल बनकर उभरी हैं।
यह बात उस समय की है जब तालिबान ने वर्ष 2007 में स्वात को अपने कब्जे में ले लिया था और लगातार कब्जे में रखा रहा। तालिबानियों ने वहां पर काफी जुल्म भी किए और लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी, उनके स्कूल बंद करा दिए थे। कार में म्यूजिक से लेकर सड़क पर खेलने तक पर पाबंदी लगा दी गई थी। तब मलाला ने इसके विरोध में महज अपनी डायरी के माध्यम से महज 15 साल की उम्र में तालिबानियों के विरोध में अवाज उठायी।
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मलाला को बचपन से ही डायरी लिखने का शौक था और यही शौक उस समय उसकी ताकत बन गया जब उसने तालिबान के कट्टर फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को लोगों के सामने लाने का काम किया। सभी लोगों को इस कलम की ताकत के दम से जागरूक किया। साथ ही तालिबान के खिलाफ खड़ा भी किया। मलाला ने तालिबान के लोगों को यह एहसास करा ही दिया कि एक बच्चे, एक शिक्षक, एक किताब, एक कलम में इस दुनिया को बदलने की ताकत होती है। जिसके सामने सभी ताकतें झुक जाती हैं और हुआ भी ऐसा ही। जिससे सारे तालिबानी इतने बौखला गए कि उन्होंने मलाला को मारने का पूरा इंतजाम कर दिया। मलाला जब स्कूल गई तो वहां उस पर गोलियां बरसाई गई। विरोध करने के लिए जैसे ही वह बाहर आई गोलियां उसके शरीर को भेदते हुए निकल गई।
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15 वर्ष की इस छोटी सी जान से तालिबान पूरी तरह थर्रा चुका था। मलाला को मौत की गोद में सुलाने का प्रयास करने वाले लोग समझ चुके थे कि अब पाकिस्तान को रोशनी दिलाने वाला सूरज ढल चुका है, पर उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि सूरज डूबता है दोबारा रोशनी देने के लिए। मलाला ने सामने आई मौत का भी जमकर सामना किया। पाश्चात्य चिकित्सा और आधुनिक तकनीकि से उसे नई जिन्दगी एक वरदान रूप में मिली। मलाला को इलाज के लिए ब्रिटेन के क्वीन एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां से मलाला पूर्णतः स्वस्थ होकर लौटी।
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2012 में सबसे अधिक प्रचलित शख्सियतों में पाकिस्तान की इस बहादुर बेटी का नाम भी शामिल किया गया। लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ने वाली बहादुर मलाला यूसुफजई की बहादुरी के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा उसके सोलहवें जन्मदिन पर 12 जुलाई को मलाला यूसुफजई दिवस घोषित किया गया।
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उसके बाद तो मलाला पाकिस्तान की ताकत बन कर उभरी और देश-विदेश में चर्चा का विषय बन चुकी थी। अब मलाला की कलम की ताकत पूरे देश में फैल चुकी थी। नोबल पुरस्कार विजेता मलाला अब जिन्ना, नुसरत फतेह अली, इमरान खान के बाद सबसे प्रसिद्ध पाकिस्तानी बन गई है। इसके बाद भी मलाला किसी दूसरे टीनेजर की ही तरह है। इतनी शोहरत और प्रसिद्धि पाने के बाद भी वो किसी आम लड़की की ही तरह पेश आती है।
मलाला कहती हैं कि वो पूरी दुनिया को अपनी कहानी बता रही हैं इसलिए नहीं कि वो अनोखी है, बल्कि इसलिए कि ये कहानी अनोखी नहीं है।