ताजमहल जिसे मुमताज की याद और शाहजहां की मुहब्बत का प्रतीक माना गया है। जिसके हर कण में मुमताज की दस्तां आज भी सुनाई देती है। जहां पर बनी उनकी कब्र पर शाहजहां के आंसू गिरते देखे गये हैं। इन्हीं कहानियों में रहस्य बना हुआ है यह ताजमहल।
ताजमहल आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। जिसे देखकर शाहजहां और मुमताज के मुहब्बत की यादें ताजा हो जाती है। जिसका दास्तां आप वहां के गाईड से सुन सकते हैं, जो दोनों के प्यार मुहब्बत से भरी कहानी बयां कर लोगों को ताजमहल की विशेषता बताते हैं। पर एक रहस्य जो सबके मन में एक प्रश्न सा खड़ा करता है कि क्या सचमुच में ही मुमताज की कब्र पर शाहजहां के आंसू गिरते है।
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लेकिन इस बात की हकीकत कुछ और है। वास्तविकता यह है कि मुमताज की कब्र पर गिरने वाला शाहजहां का आंसू नहीं बल्कि हर मौसम में होने वाली नमी से आने वाली बूंदों का पानी है। इस आंसू की कहानी का सच यह है कि ताजमहल को देखने के बाद इसकी सुंदरता सबका मन मोह ले रही थी और यह महल दुनिया का सबसे खास महल था। जिसके बारें में शाहजहां जानता था और वह नहीं चाहता था कि इस प्रकार का कोई दूसरा महल बने। जिसके लिए शाहजांह ने एक ठोस फैसला लिया कि सभी कारीगरों के हाथ काट दिए जाएं। जिससे दूसरा ताजमहल कभी न बन सके।
क्रूर शासक के इस ठोस कदम से सभी कारीगरों के हाथ कलम भी कर दिये गये पर उन्हीं के बीच एक चतुर कारीगर ने अपनी चतुराई दिखा दी और राजा से कहा कि जहांपनाह! ताजमहल के गुम्बद में कुछ दोष है जिसे मेरे अलावा कोई दूसरा ठीक नहीं कर सकता। यदी आप कहें तो मैं उसे ठीक कर दूं। इसके बाद में आप मेरे हाथ कटवा दीजिएगा।
चतुर कारीगर इस बात को मानकर शाहजहां ने उसे दोष ठीक करने तक की मोहलत दे दी। लेकिन मौके का फायदा उठाकर और शाहजहां के इस क्रूर निर्णय का बदला लेने की भावना में आकर कारीगर ने ताज के गुम्बद में एक ऐसा सुराख कर दिया जो सीधे मुमताज की कब्र के ऊपर खुलता था।
सुराख करने के जब बाद कारीगर राजा का सामने आया तो उसके हाथ कलम करने का आदेश दे दिया गया। इस बात पर कारीगर जोर-जोर से हंसने लगा। राजा ने उसके हंसने का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी बात का खुलासा कर दिया और यही चिल्लाता रहा कि मेरे द्वारा महल में किया सुराख हर मौसम में नमी का पानी सारे कारीगरों के आंसू बन कर मुमताज की कब्र पर गिरते रहेंगे।
उस वक्त शाहजहां के गुस्से की आग नें भले ही उस कारीगर के हाथ कटवा दिए पर इस दोष को अबतक कोई खत्म नहीं कर पाया, यहां तक कि आज के बड़े बड़े इंजीनियर भी इसका हल नहीं निकल पाएं। इसलिये आज भी उन सुराखों से पानी की बूंदें मुमताज की कब्र पर गिरती हैं।