दुनिया में ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं जो अपने से ज्यादा दूसरों के लिए सोचते हैं। ऐसे ही लोगों में शुमार एक नाम है सोहेल सैफी का। सोहेल ने साल 2000 में गाजियाबाद से बीएससी तो पास की, लेकिन जिंदगी की एक कड़वी सच्चाई से सामना होने पर समाजसेवा करने का फैसला लिया। आपको शायद यकीन ना हो, लेकिन 15 साल से सोहेल सैफी बेटियों को शिक्षित करने की मुहिम चला रहे हैं। वे मुस्तफाबाद जैसे पिछड़े इलाके में महिलाओं को नि:शुल्क शिक्षा व प्रशिक्षण दिलाकर उन्हें रोजगार मुहैया कराने में जुटे हैं। शायद उनके इसी समर्पण का ही नतीजा है कि पिछले एक दशक से वह समाजसेवा में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए अब तक तकरीबन 7 हजार महिलाओं व बेटियों को आत्मनिर्भर बनाकर रोजगार दिला चुके हैं।
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कहते हैं कि अगर कोई इंसान किसी काम को करने की ठान ले तो कोई ताकत नहीं जो उसे रोक सके। वो ताकत तब बढ़ जाती है जब उस इंसान को इस काम को करने के लिए उसके परिवार का सहयोग भी मिल जाता है। सोहेल सैफी को भी वही ताकत, वो प्रेरणा अपने पिता से मिली। सोहेल के पिता ने ही उन्हें नि:शुल्क शिक्षा देकर बच्चों में नई उमंग पैदा करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि पिता की बातों से प्रेरित होकर उन्होंने बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देना शुरू कर दिया, लेकिन इसी दौरान उन्हें पता चला कि वह जिन बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं उनमें से किसी के घर में भी बेटियों को शिक्षित नहीं किया जाता था। इस तरह की सोच ने उन्हें अंदर से काफी झंकझोर कर रख दिया। जिसके बाद उन्होंने बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने की ठानी और साल 2004 में उनके पास करीब 250 पिछड़े एवं गरीब परिवार की लड़कियां शिक्षा एवं प्रशिक्षण लेने लगीं।
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साल 2004 में सोहेल सैफी सक्रिय रूप से समाजसेवा में उतर गए। उन्होंने सोफिया नामक समाजसेवी संगठन का पंजीकरण कराया। साल 2007 से 2009 तक उन्होंने सरकारी मंजूरी लेकर कौशल विकास का प्रशिक्षण देना शुरू किया। हालांकि सरकारी मान्यता नहीं मिली तो उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूल (एनआइओएस) से वोकेशनल कोर्स की मंजूरी ली। जिसके जरिए लड़कियों को सरकारी एवं प्राइवेट नौकरियां आसानी से मिल सकें।
बता दें कि इसमें उन्होंने 15 कोर्स कराने की मंजूरी ली। जिसमें कटिंग, टेलरिंग, ड्रेस डिजाइनिंग, ब्यूटी कल्चर, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर, टाइपिंग, शॉर्टहैंड आदि शामिल हैं। वहीं साल 2009 में नेशनल कॉउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंगवेज एनसीपीयूएल विभाग से उर्दू, अरबी एवं कैलीग्राफी को पढ़ाना शुरू किया, जो आज भी चल रहे हैं।
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इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली एवं भारत सरकार के बहुत से विभागों के साथ मिलकर महिला सशक्तिकरण के लिए काम करना भी शुरू किया है। जिनमें कानूनी सलाह, स्वास्थ्य, न्यूट्रिशियन सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं को उत्तर पूर्वी जिला प्रशासन के साथ मिलकर लोगों तक पहुंचाया है। वर्तमान में वह हर साल तकरीबन 700 से ज्यादा लड़कियों को प्रशिक्षित कर रोजगार दिला रहे हैं। हालांकि मूलरूप से वह उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिला स्थित रोनी सलोनी गांव के हैं, लेकिन बहरहाल वो 20 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं। आपको जानकर अचंभा होगा कि समाजसेवा करने वाले सोहेल अपने जीवन यापन के लिए एजुकेशन के क्षेत्र सहित मोबाइल एवं लैपटॉप रिपेयरिंग का सेंटर भी चला रहे हैं। जिसमें उन्हें उनके परिवार का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है।