आस्था, विश्वास और परम्पराओं से जुड़ा एक ऐसा गांव जहां पर इंसान तो क्या, प्रकृति भी अपना सिर झुकाने के लिए विवश हो उठती है, जहां कि बेजान चट्टानें भी श्रद्धा के साथ अपना सिर झुका कर नमन करती हैं। ऐसी ही है इस स्थली की कहानी जिसके सामने विज्ञान अपने तथ्यों से इसको बदलने में असमर्थ रहा है। आज हम आपको देवों की उस स्थली के बारें में बता रहें हैं जो अजमेर के गांव देवमाली में स्थित है। जिस की मिसाल मिलना आज के समय में भी शायद असंभव है।
देवमाली गांव गुर्जर समाज के आराध्य माने जाने वाले भगवान देवनारायण की कर्म स्थली मानी जाती है जहां पर विशाल पहाड़ियों के बीच एक मंदिर है। जिसकी स्थापना खुद भगवान ने अपने हाथों से की थी और स्वर्ग की यात्रा करने के बाद उन्होंने इसी स्थान पर गुर्जर समाज को दीक्षा दी थी।
आगे पढ़ें क्यों सिर झुकाती हैं चट्टानें
निर्जन इलाके में बसे इस गांव के में सिर्फ चट्टानें ही हैं, और इन्ही चट्टानों के बीच बने मंदिर की ओर गौर से देखें तो सभी चट्टानें मंदिर की ओर झुकी हुई है। यहां के लोगों का मानना है कि जिस समय भगवान देवनारायण स्वर्ग से लौट इस गांव में थे तब यहां की धरती, आकाश, वायु, पेड़-पौधों, यहां तक की चट्टानों ने भी उनका स्वागत अपना सिर झुकाकर किया था। तभी से इस मंदिर की ओर चट्टाने आज भी झुकी हुई है।
आगे पढ़ें क्यों गांव में नहीं होती चोरी.
राजस्थान में बसा देवमाली गांव एक मात्र ऐसा गांव है जो आस्था और विश्वास के नाम से जाना जाता है तभी तो यहां के हर घर पर कभी ताला नहीं लगता। और ना ही कभी चोरी होती है। कहां जाता है कि जो लोगों ने यहां पर चोरी करने की कोशिश भी की है वो बाद में इस गांव से बाहर जाने का रास्ता भूल गये है।
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गांव वालों के पास जमीन…
देवमाली एक ऐसा इकलौता गांव है जहां पर रहने वाले ग्रामीणों के पास सालों से इस जगह पर रहने के बावजूद भी कोई जमीन नहीं है। कोई भी इस गांव की जमीन का मालिक नहीं है। इस गांव की पूरी जमीन सरकारी खातों में भगवान देवनारायण के नाम पर दर्ज की गई है। कहा जाता है काफी समय पहले यहां की जमीन पर गांव वालों का ही नाम दर्ज था लेकिन जब इस गांव के सभी लोगों को पुजारी का दर्जा प्राप्त हुआ। तब सरकारी खातों में सारी जमीन मंदिर के नाम दर्ज करा दी गई। बाद में सरकार द्वारा भूमि कानून संशोधन नियम के तहत यहां की सारी भूमि भगवान देवनारायण के खाते में दर्ज कर दी गई। जब से यहां के देवमाली गांव के लोगों ने भगवान देवनारायण की शिक्षाओं का पालन करते हुये आपनी जीवन सादगी से निभा रहे है। यहां के लोग जो भी काम करते है। भगवान देवनारायण के नाम से ही करते है।
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पुरानी मान्यताओं के अनुसार जब धरती पर पाप ज्यादा बढ़ा था तब उस पाप का नाश करने के लिए भगवान विष्णु ने इस धरती पर भगवान देवनारायण के रूप में जन्म लिया था। और उसी समय भगवान देवनारायण ने इस गांव में रहने वाले गुर्जर समाज को लावणा गोत्र का नाम देकर इस मंदिर की सेवा करने का काम सौंपा कर उनसे कुछ वचन लिए थे। जिसमें बोला गया था कि जिस वक्त मेरे मंदिर का निर्माणकार्य पक्का कराया जायेगा तो आप लोग स्वयं कच्चे घरों में ही निवास करोगे। इस गांव में कभी भी मांस मदिरा का सेवन नहीं किया जाएगा और तब से गांव के लोग भगवान को दिए गये वचनों का पालन कर कच्चे में मकानों में रहकर सादा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। भौतिकता के इस युग में आज भी यहां के लोग आधुनिकता से कोसों दूर है। देवभूमि की इस पवित्र स्थली को हमेशा ऐसा ही बनाये रखने के लिए लोग पूरी कोशिश कर रहे है, जो हर किसी के लिए एक मिसाल से कम नहीं है।