आज का समय डिजिटलाइजेशन और तकनीक के मार्ग पर अग्रसर है। आज हम अपने संदेश को किसी पहुँचाने के लिए तकनीक के बेहतर माध्यमों का इस्तेमाल करते है। आज हमारे पास ईमेल है मैसेंजर इत्यादि की सुविधा है जिनके जरिये झट से किसी के पास भी आपका सन्देश पहुँच जाता है। मगर एक समय था जब सन्देश भेजने का एक मात्र जरिया पोस्टकार्ड हुआ करता था जो लिखे जाने के 2 या 3 दिन बाद अपने ठिकाने पर पहुंचता था। इस बीच जिसको पत्र लिखा गया था वह बड़ी ही बेसब्री के साथ पत्र के आने का इंतजार करता था।
यह वह समय था जब पत्र के जरिये ही एक दूसरे का हाल चाल पूछा जाता था। देखा जाए तो पोस्टकार्ड के जरिये एक दूसरे के बारे में जानना और सलाह देने का वह समय भी अपने आप में एक ऐतिहासिक समय था। इसकी खूबसूरत दुनियां को अब 148 वर्ष पुरे हो चुके हैं यानि पोस्टकार्ड वर्ष का हो गया है। आपको बता दें कि दुनियां में इसकी सबसे पहली प्रति छपने का उल्लेख आस्ट्रिया में अक्तूबर 1869 के समय का मिलता है।
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www.old-prague.com नामक वेबसाइट पर पोस्टकार्ड से सम्बंधित विशेष जानकारी दी गई है। इस जानकारी के अनुसार इसका विचार सबसे पहले “कोल्बेंस्टीनर” नामक एक व्यक्ति को आया था जोकि ऑस्ट्रियाई के एक प्रतिनिधि थे। इसके बाद उन्होंने अपने इस विचार को ” डॉ. एमैनुएल हर्मेन” को बताया जोकि सैन्य विभाग के अर्थ शास्त्री थे। आस्ट्रिया के डाक विभाग ने इस विचार पर तेजी से कार्य शुरू किया तथा अक्तूबर 1869 में इसकी पहली प्रति सामने आई। इस प्रकार से दुनिया में इसकी शुरुआत हुई।
कैसा था दुनिया का पहला पोस्टकार्ड:-
जानकारी के लिए आपको बता दें कि दुनियां का यह पहला पोस्टकार्ड पीले कलर का था और यह 122 मिलीमीटर लंबा था। इसकी शुरुआत में ऑस्ट्रिया-हंगरी में 3 महीने में ही 3 लाख से ज्यादा पोस्टकार्ड बिक गए थे। यह इतना ज्यादा लोकप्रिय हो गया था कि इसको अन्य देशों ने भी अपनाना शुरू कर दिया।
जब इंग्लैंड और भारत में पहुंचा पोस्टकार्ड:-
इंग्लैंड में जब इसका का चलन शुरू हुआ तो पहले ही दिन 5,75,000 पोस्टकार्ड बिक गए थे। जहां तक हमारे देश की बात है तो आपको बता दें कि भारत में इसकी 1879 में शुरू हुई थी। उस समय इसकी कीमत महज 3 पैसे रखी गई थी। यह हल्के भूरे रंग का था और इस पर ‘ईस्ट इंडिया पोस्टकार्ड” शब्द छपे थे। समय के साथ साथ भारत के पोस्टकार्ड में तब्दीलियां होती गई और आज हमारे सामने इसका एक अलग ही रूप है।