पोखरण 2 से भारत दुनिया के नक्शे पर एक परमाणु संपन्न राष्ट्र की कतार में सीना तान कर खड़ा हो गया है, उसी पोखरण 2 की सालगिरह आज पूरा देश गर्व से मना रहा है, इस पोखरण दो की कहानी भी बड़ी नाटकीय रही है और इसकी सफलता का श्रेय पूर्व राट्रपति और देश के चहेते डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और उनकी टीम को जाता है। देश को परमाणु संपन्न राष्ट्र का रुतबा दिलाने वाले मिसाइल मैन ने ऐसा तानाबाना बुना था कि अमेरिका की खोजी सेटेलाइट भी परीक्षण की टोह नहीं ले पाए थे। अमेरिका के जासूसी उपग्रह दुनिया के हर देश की जासूसी में लगे रहते हैं खास कर जो परमाणु परीक्षण की कोशिश में होते थे उनपर खास निगरानी करते हैं ऐसे में भारत पर अमेरिका की खास नज़र थी पर अमेरिका को चकमा दे कर सफल परीक्षण कर भारत ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था।
भारत लागातर कशिश में था कि अपनी परमाणु क्षमता का परीक्षण कर खास मुकाम तक पहुंचे लेकिन इस काम में खतरे भी काफी थे, पहले सन् 1995 में परमाणु परीक्षण करने की तैयारी भारत ने कर ली थी लेकिन अमेरिकी उपग्रह की टोह लेने के बाद अमेरिका के दबाव की वजह से भारत को उस समय विराम लेना पड़ा था। ऐसे में अमेरिकी उपग्रह की नज़र से बचा कर परीक्षण करना कोई मामूली बात नहीं थी परीक्षण के समय में प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी को उनके सुरक्षा सलाहकार डॉ एपीजे कलाम ने तैयार किया, पर सबसे बड़ी चुनौती प्रोजेक्ट को निर्बाध जारी रखने की थी।
लिहाजा मिशन का जिम्मा अपने कंधों पर लिया डॉ कलाम ने। परमाणु बमों को भाभा ऐटमिक रिसर्च सेंटर से पोखरण तक लाने के लिए खास तरकीब का सहारा लिया गया इसके लिए सेब की पेटियों में बम को रख कर आर्मी के ट्रकों से परीक्षण स्थल तक लाया गया। डिट्क्टिव सेटेलाइट और दुनिया की नज़रों से बचाने के लिए धरती के नीचे जहां परीक्षण होना था वहां झाड़ियां रख गईं थी जिससे ये नज़र ना आए और सीक्रेसी कायम रखने के लिए इस प्रोजेक्ट में शामिल सभी वैज्ञानिकों के नाम बदल दिए गए थे।
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डॉ कलाम का नाम मेजर जनरल पृथ्वीराज रखा गया। सभी क्रिया-कलाप रात के अंधेरे में किया जाता था और 24 घंटे में ऐसे समय का इंतज़ार किया जाता था जिस समय अमेरिका का खोजी उपग्रह किसी दूसरे ग्रह की परछाई में छिप जाता था ऐसे ही समय में सेना की वर्दी में साइंटिस्ट हरकत में आते थे, ये सिलसिला लगातार जारी रहा जब पूरी तैयारी मकम्मल हो गई तब मई 1999 में ‘ऑपरेशन शक्ति’ को पूरा किया गया कुल मिला कर 11 दिनों की भागदौड़ और भारी मेहनत के बाद डॉ कलाम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपायी से बात कर संदेश दिया कि “बुद्धा मुस्कराए” मतलब साफ था अटल बिहारी वाजपेयी जी को समझ में आ गया कि भारत उस मुकाम पर पहुंच गया है कि दुनिया उसे परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र समझे । ये सुनकर आपको हैरानी होगी कि भारत के कदम यही नहीं थमे डॉ कलाम की टीम ने एक-एक कर 5 परमाणु बमों का सफल परीक्षण किया, इसके बाद डॉ कलाम ने गर्व से दुनिया के सामने इसकी घोषणा की। आज उस मौके को याद कर पूरे देश का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।