दुर्गा वो शक्ति का नाम है जिसकी शक्ति से बड़े से बड़े राक्षसों का अंत हुआ। चार भुजाओं वाली इस दुर्गा के स्वरूप को देखकर लोग इनकी शक्ति को प्रणाम करते है। पर आज की यह दुर्गा अपने दोनों हाथों से अंपग होते हुये भी उसकी शक्ति अपार है। वो लड़ रही है अपनी इस कमजोरी से जिसके लिये वो दिन रात प्रयत्न कर आगे बढ़ने का जोश रखती है।
दमोह जिले के बम्हौरी गांव में रहने वाली दुर्गा के दोनों हाथ बचपन से ही नहीं हैं,वो अपना सारा काम पैरों की मदद से ही करती हैं। उसका पढ़ाई के प्रति जोश इतना है कि इसके लिये वह स्कूल 4 कि.मी. पैदल चलकर ही जाती है और पैरों के दम पर उसने 10वीं की परीक्षा भी दी।
दुर्गा की पढ़ाई के प्रति इस लगन को देखकर जब उससे इस बारे में पूछा गया तो उसने एक सादा सा जवाब दिया और कहा- मैं काबिल बनने के लिए पढ़ाई कर रही हूं। जिससे किसी पर बोझ ना बन सकूं और अपनी मेहनत के बलबूते पर ही आगे बढ़ूं। परीक्षा में पास हूं या फेल क्या फर्क पड़ता है पर जिंदगी में न कभी हारी हूं न आगे हारूंगी। दुर्गा की इस लगन को देखकर सभी के हौसले बुंलद हो जाते है और यह कविता दुर्गा के हौसलें पर सटीक बैठती है।
मंजिल उन्ही को मिलती है
जिनके सपनो में जान होती है
पंख से कुछ नहीं होता
हौसलों से उड़ान होती है