पुराने समय से चली आ रही बलि प्रथा अब तो बंद हो चुकी हैं, पर आज भी ऐसे कई स्थान हैं जहां पर इंसानी खून को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता हैं। दरअसल प्राचीन समय में इस प्रकार की कई मान्यताएं थी जो अंधविश्वास को फैलाती हैं। इसी कारण भारत में कई संस्कृतियां हैं। इन्हीं की वजह से पुराने समय में अलग अलग मान्यताएं और धारणाएं प्रचलित थी। आज बलि प्रथा समाप्त हो चुकी हैं, पर कुछ स्थानों पर आज भी इंसानी खून का भोग लगाया जाता हैं।
इन स्थानों में से एक हैं “बोरोदेवी मंदिर”, यह मंदिर पश्चिम बंगाल में स्थित हैं। आप जानकर हैरान हो जायेंगे कि इस मंदिर में 500 वर्षों से इंसानी खून का भोग लगता आ रहा हैं। मान्यता हैं की इस मंदिर में बिना इंसानी खून का भोग लगाए आने वाले भक्त की पूजा सफल नहीं होती हैं।
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बताया जाता हैं कि इस मंदिर में नवरात्र के दौरा अष्टमी की रात को सिद्धियों की प्राप्ति हेतु तांत्रिक मानव शिशु की बलि दिया करते थे, पर अब इस कार्य को एक अपराध माना जाता हैं। मानव बलि की तरह पशु बलि को भी अपराध ही माना जाता हैं, मगर इस स्थान पर आज भी अष्टमी की रात्रि देवी काली की उपासना के दौरान इंसानी खून का भोग लगाया जाता हैं।
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महाराजा हरेंद्र नारायण ने 1831 में इस मंदिर की आधारशिला रखी थी और इसमें देवी काली की प्रतिमा की स्थापना कराई थी। आज बोरोदेवी मंदिर त्रिपुरा तथा असम के लोगों के लिए भक्ति का प्रमुख केंद्र माना जाता हैं। इस मंदिर की वर्तमान प्रतिमा चावल से बनी हैं। माना जाता हैं कि इस प्राचीन प्रतिमा को इस मंदिर से हटा कर असम के “मदन मोहन मंदिर” में स्थापित कर दिया गया था। पुराने समय में यहां बलि प्रथा चलती थी, पर बाद में मंदिर के द्वार रक्षक द्वारा बलि के स्थान पर महज 3 बूंद इंसानी खून को पूजा के लिए पर्याप्त कर दिया गया। तभी से बोरोदेवी मंदिर में यह प्रथा चलती आ रही हैं।