मृतकों के शवों के अंतिम संस्कार के लिए नहीं मिल पाई लकड़ियां, लोगों में फूटा आक्रोश

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हिन्दू संस्कृति के अनुसार किसी भी व्यक्ति के मर जाने पर उसके शव को जलाकर उसका अंतिम संस्कार किया जाता हैं। मृतक के शव को जलाने के लिए लकड़ियों का सहारा लिया जाता हैं। आमतौर पर बड़ी आसानी से लकड़ियां मिल जाती हैं। मगर हाल ही में एक ऐसा वाक्या सामने आया हैं जहाँ लोगों को अपने मृतक को जलाने के लिए लकड़ियां ही नहीं मिल पाई और उन्हें अपने मृतक के मरने का गम भुला कर लकड़ियों के लिए इधर उधर भटकना पड़ा। ऐसे में तो यही कहा जा सकता हैं कि यहाँ मरना तो आसान हैं पर अंतिम संस्कार करना किसी जंग से कम नहीं हैं।

देखा जाए तो किसी भी मृत व्यक्ति के दाह संस्कार के लिए लकड़ियां न देने का मामला काफी संजीदा हैं वह भी तब जब लकड़ियां भरपूर मात्रा में उपलब्ध हों। आपको बता दें कि यह मामला छत्तीसगढ़ के कोण्डा गांव का हैं। यहां के जिला मुख्यालय में एशिया का सबसे बड़ा लकड़ी का डिपो हैं पर फिर भी लोग अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियों की कमी से जूझ रहें हैं।

अंतिम संस्कारImage Source:

कुछ दिन पहले जिला मुख्यालय से करीब 14 कि.मी की दूरी पर स्थित ग्राम नगरी के पटेलपारा में एक महिला का अचानक निधन हो गया था। उस महिला के दाह संस्कार के लिए ग्रामीणवासी लकड़ियां लेने के लिए निस्तार डिपो पहुंचे पर वहां लकड़ियां ख़त्म हो चुकी थी इसलिए वे लोग मुख्य डिपो में गए। इस दौरान मुख्य डिपो प्रभारी रेंजर सलाम ने इन लोगों को निस्तार डिपो से पर्ची कटवा कर लाने को कहा लेकिन वहां का प्रभारी छुट्टी पर था इसलिए पर्ची लाना संभव न था।

मात्र लकड़ियों के लिए इतनी भाग दौड़ करने से गुस्साए लोगों का गुस्सा प्रभारी रेंजर सलाम पर फूट पड़ा। लोगों का कहना था कि हम लोग किसी उत्सव के नहीं बल्कि अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियों को लेने आये थे और इसके लिए वह पूरी कीमत भी चुका रहे थे। ऐसे में प्रभारी का लकड़ियों को न देना इंसानियत के खिलाफ हैं। हालाँकि इस मामले में उच्चाधिकारियों के दखल के बाद आख़िरकार लोगों को लकड़ियां तो मिल गई मगर अभी भी लोगों में प्रभारी के प्रति भारी आक्रोश देखने को मिल रहा हैं।

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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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