पौराणिक कथाओं की बात करें तो महादेव शिव तथा भगवान गणेश के प्रथम मिलान में युद्ध हुआ था, जिसमें महादेव ने गणेश जी का सर काट डाला था और इसके बाद जब असल बात पता लगी तो गणेश जी को हाथी का सर लगा कर उन्हें “गजानन” नामक नया नाम महादेव ने दिया था। इस प्रकार से प्राचीनकाल से ही हाथी को भगवान गणेश के साथ जोड़कर हिन्दू समाज अपनी आस्था को प्रकट करता आ रहा है और इसी क्रम में आज हम आपको एक “हाथी” की कब्र के बारे में जानकारी देने जा रहें हैं जो की अनेक लोगों में सभी प्रकार की शारीरिक परेशानियां को दूर करने के लिए प्रसिद्ध है, आइए जानते हैं इस कब्र के बारे में।
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हाथी की यह कब्र भारत के “नाहन” नामक स्थान पर स्थित है, जानकारी के लिए आपको यह बता दें कि यह कब्र नाहन-शिमला मार्ग पर सीजेएम निवास के पास ही स्थित है। रियासत कालीन समय में यहां के राजा महाराज सिरमौर हुआ करते थे और उनका एक प्रिय हाथी था जिसका नाम “गजराज” था। यह हाथी न सिर्फ महाराज का प्रिय था, बल्कि उस समय उनके राज्य के सभी बच्चों को भी बहुत प्रिय हुआ करता था। राज्य के बच्चों को राज्य के कर्मचारी गजराज के ऊपर सवारी भी कराते थे, गजराज बच्चों के लिए अपने साथ बहुत से खेल खिलौने और मिठाइयां लाया करता था। इस प्रकार से गजराज एक ऐसा प्राणी था जो राज्य के सभी लोगों को प्रिय था, एक रोज अचानक गजराज इस संसार को छोड़कर चला गया और इसी वजह से राज्य से सभी लोगों सहित महाराज सिरमौर भी गमगीन हो गए। महाराज सिरमौर ने गजराज का अंतिम संस्कार शाही तरीके से करने की एक घोषणा की और गजराज का अंतिम संस्कार शाही तरीके से करा कर वहां एक पक्की कब्र बनवा दी, आज भी यह प्राचीन कब्र उस समय की बनाई कुछ चीजों में से एक है, यह कब्र काफी समय से लोगों की आस्था का केंद्र बन चुकी है और यहां पर लोगों का आना-जाना लगा रहता है, कई लोगों की मान्यता यह है कि इस कब्र पर आने से आपके स्किन संबंधी रोग दूर हो जाते हैं, तो कुछ लोगों का मानना है कि इस कब्र पर मन्नत मांगने से संतान की कामना भी पूरी हो जाती है। खैर, जो भी हो आज भी यह कब्र इस बात का प्रतीक है कि पुरातनकाल के लोगों में आज के लोगों से कहीं ज्यादा संजीदगी और प्रेम मौजूद था।