महाभारत में पांडवों के अज्ञातवास के बारे में आपने पढ़ा ही होगा, पर क्या आप जानते हैं कि पांडवों ने अपना अज्ञातवास आखिर किस स्थान पर पूरा किया था? यदि नहीं, तो आज हम आपको उस स्थान के बारे में ही बता रहें हैं, जहां पांडवों ने अपने अज्ञातवास का समय गुजारा था।
आपको हम बता दें कि यह स्थान बीजापुर-दंतेवाड़ा के जिला मुख्यालय से तेलंगाना प्रदेश की सीमा से सटा “पुजारी कांकेर” नामक स्थान है। इस स्थान पर ही पांडवों के अपने अज्ञातवास का समय बिताया था। पुजारी कांकेर गांव के पास में ही स्थित एक पहाड़ है, इस पहाड़ का नाम “पांडव पर्वत” है। मान्यता है कि इस पहाड़ पर ही पांडवों ने अपने अज्ञातवास में निवास किया था।
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इस पांडव पर्वत पर एक रहस्यमय प्राचीन मंदिर भी है। इस मंदिर के घंटे घंटियां स्वयं ही बजने लगते हैं, पर ऐसा क्यों होता है इस बारे में अभी तक कोई नहीं बता पाया है। इस मंदिर का रहस्य अभी भी बरकरार है। पांडव पर्वत के पास पुजारी कांकेर नामक गांव में पांडवों के 5 मंदिर भी बने हैं और इन सभी मंदिरों के लिए अलग-अलग पुजारी नियुक्त किए गए हैं। गांव की सीमा पर ही गांव के निवासियों ने धर्मराज युधिष्ठिर का भी मंदिर निर्मित किया हुआ है।
इस मंदिर परिसर में प्रत्येक 2 वर्ष बाद मेला लगता है और करीब 25 से 30 गांवों के लोग इस मेले में सम्मलित होते हैं। मंदिर के पुजारी दादी राममूर्ति बताते हैं कि “जब पांडवों ने अपना सभी कुछ कौरवों को गवां दिया था, तब उन्होंने अपना अज्ञातवास का समय अनेक स्थानों के जंगलों में काटा था और इन स्थानों में “पुजारी कांकेर” नामक यह गांव भी एक माना जाता है।
इस गांव में पांडवों ने दुर्गम पहाड़ पर बनी इस गुफा से ही प्रवेश किया था और इस पहाड़ पर ही निवास किया था, इसलिए इस पहाड़ का नाम पूर्वकाल में ही “पांडव पहाड़” रख दिया गया था। प्रत्येक 2 वर्ष में इस गांव के धर्मराज मंदिर पर मेला लगता है। यह मेला अप्रैल में आयोजित किया जाता है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस गांव में पुजारी अधिक हैं, इसलिए इस गांव का नाम “पुजारी कांकेर” पड़ा है।