11 दिसम्बर यानि 20वीं सदी के महान दार्शनिक माने जाने वाले ओशो का जन्मदिन। ओशो को बहुत से नाम लोगों ने अपनी-अपनी सोच के अनुसार समय-समय पर दिए। किसी ने उनको आचार्य कहा, तो किसी ने उनको संत कहा। इसके अलावा भी बहुत से ऐसे सम्बोधन थे जो दुनिया ने उनको दिए, पर यथार्थ में वे इन सब सम्बोधनों और शब्दों से बहुत दूर के व्यक्ति माने जाते रहे हैं।
कौन थे ओशो –
बहुत कम लोग जानते हैं कि ओशो का वास्तिवक नाम चन्द्रमोहन जैन था, जो बाद में आचार्य रजनीश में परिवर्तित हो गया था। ओशो रजनीश (11 दिसम्बर1931 -19 जनवरी 1990 ) का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था। ओशो शब्द लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है, जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना। वे एक आध्यात्मिक गुरु थे और भारत व विदेशों में जाकर उन्होंने प्रवचन दिये।
Image Source: http://www.iosho.co.in/
1970 में ओशो कुछ समय के लिए मुंबई में रुके और उन्होंने अपने शिष्यों को “नव सन्यास” में दीक्षित किया। अध्यात्मिक मार्गदर्शक की तरह कार्य प्रारंभ किया। 1974 में “पूना ” आने के बाद उन्होंने अपने “आश्रम” की स्थापना की जिसके बाद विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी। 1980 में ओशो “अमेरिका” चले गए और वहां सन्यासियों ने “रजनीशपुरम” की स्थापना की।
कार्य —
ओशो ने सैकड़ों पुस्तकें लिखीं, हजारों प्रवचन दिये। उनके प्रवचन पुस्तकों, आडियो कैसेट तथा विडियो कैसेट के रूप में उपलब्ध हैं। अपने क्रान्तिकारी विचारों से उन्होंने लाखों अनुयायी और शिष्य बनाये। अत्यधिक कुशल वक्ता होते हुए इनके प्रवचनों की करीब 600 पुस्तकें हैं। इनके नाम से कई आश्रम चल रहे हैं।
Image Source: http://www.iosho.co.in/
लगभग 15 वर्ष तक लगातार सार्वजनिक भाषण देने बाद आचार्य रजनीश ने वर्ष 1981 में सार्वजनिक मौन धारण कर लिया। इसके बाद उनके द्वारा रिकॉर्डेड सत्संग और किताबों से ही उनके प्रवचनों का प्रसार होता था। वर्ष 1984 में उन्होंने सीमित रहकर फिर से सार्वजनिक सभाएं करना शुरू किया। कहा जाता है कि उस समय आचार्य रजनीश की सेवा में 93 रॉल्स रॉयस गाड़ियां उपस्थित रहती थीं। उनके इस अत्याधिक महंगी जीवनशैली ने भी उन्हें हर समय विवादों के साये में रखा।
भारत में तो ओशो रजनीश अपने सिद्धांतों की वजह से विवादों में रहते ही थे, लेकिन ओरेगन में रहते हुए वे अमेरिकी सरकार के लिए भी खतरा बन चुके थे। 9 जनवरी, वर्ष 1990 को रजनीश ने हार्ट अटैक की वजह से अपनी अंतिम सांस ली। जब उनकी देह का परीक्षण हुआ तो यह बात सामने आई कि अमेरिकी जेल में रहते हुए उन्हें थैलिसियम का इंजेक्शन दिया गया और उन्हें रेडियोधर्मी तरंगों से लैस चटाई पर सुलाया गया। जिसकी वजह से धीरे-धीरे ही सही वे मृत्यु के नजदीक जाते रहे। खैर इस बात का अभी तक कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हुआ है, लेकिन ओशो रजनीश के अनुयायी तत्कालीन अमेरिकी सरकार को ही उनकी मृत्यु का कारण मानते हैं।