कभी मदद से यूएस ने मोड़ था मुंह, आज भारत ने खुद पाया वो मुकाम

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भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और महारत हासिल कर ली है। इसरो ने आईआरएनएसएस का आखिरी और सातवां सैटेलाइट स्पेस में लॉन्च कर दिया है। भारत के पीएसएसवी सी33 ने सफलतापूर्वक तौर पर आईआरएनएसएस-1 को अपने कक्ष में शामिल कर लिया है। इन सातों उपग्रहों को भारत ने नेवीगेशन सिस्टम के लिए तैयार किया है। अपनी इस सफलता के बाद अब भारत उन पांच देशों में शामिल हो गया है जिसके पास खुद का जीपीएस सिस्टम है। जिसके चलते भारत अब अमेरिका और रूस का मोहताज नहीं रहा। आपको बता दें कि कारगिल युद्ध के समय आवश्यकता पड़ने पर भारत ने जीपीएस के लिए यूएस से मदद मांगी थी, लेकिन तब यूएस ने मदद देने से इनकार कर दिया था। आज 17 साल बाद भारत का खुद उस मुकाम पर पहुंचना हर देशवासी के लिए गर्व की बात है।

इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने पीएसएलवी-सी 33 के सफल प्रक्षेपण पर वैज्ञानिकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि “भारत उन पांच देशों में शुमार हो गया है जिसके पास खुद का नेविगेशन सिस्टम है। जिसके चलते भारत अब अमेरिका और रुस का मोहताज नहीं रहा। अब हम तकनीक की मदद से आपदा से राहत पाने के लिए बेहतर योजना बना सकते है।” पीएम मोदी ने आईआरएनएसएस-1 के सफलतपूर्वक लॉन्चिंग के बाद वैज्ञानिकों को और उनकी पूरी टीम को शुभकामनाएं दी। मोदी छाती चौड़ी करते हुए बोले कि “वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। इस सफल प्रोजेक्ट से लोगों की जिंदगी में काफी बदलाव आएगा। वैज्ञानिकों की ओर से ये देश के लोगों के लिए बड़ा तोहफा है।” मोदी ने ये भी कहा कि इस प्रोजेक्ट को दुनिया “नाविक” नाम से जानेगी। अगर सार्क देशों ने ये सुविधा मांगी तो उन्हें भी देंगे। आपको जानकारी के लिए बता दें इस पूरे प्रोजेक्ट पर करीब 1420 करोड़ की लागत आई है।

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अमेरिका ने मदद देने से किया था इनकार-

इस प्रोजेक्ट पर वैज्ञानिक 17 साल से काम कर रहे थे। आपको बता दें कि साल 1973 में भारत जीपीएस सुविधा के लिए अमेरिका पर निर्भर था, लेकिन जब कारगिल युद्ध के दौरान भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों की पोजीशन जानने के लिए अमेरिका से मदद मांगी तो अमेरिका ने साफ तौर पर भारत को मना कर दिया। उस समय भारतीय सेना को इस सुविधा की सबसे ज्यादा जरूरत थी। इसके बाद इसरो ने फैसला लिया कि वो अपना रीजनल पोजीशनिंग सिस्टम खुद बनाएगा।

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जानें जीपीएस सिस्टम के फायदे और काम-

आपको बता दें कि आरपीएस की 6 सैटेलाइटें पहले ही लॉन्च हो चुकी है और आईआरएनएसएस-1 आखिरी व सातवां सैटेलाइट था। इस सिस्टम के जरिए जुलाई से देश के चारों तरफ 1500 किलोमीटर तक की सटीक जानकारी प्राप्त होनी शुरू हो जाएगी। हालांकि आम लोगों को इसका फायदा मिलने में 1 या डेढ़ साल लग सकता है। भोपाल में इसके तीन स्टेशन बनाए हैं। जब हम मोबाइल में जीपीएस रिसीवर ऑन करते हैं तब यह अमेरिका के 31 उपग्रहों से कनेक्ट हो जाता है और उपग्रह को आपकी पोजीशन मिलती है, लेकिन अब ये काम आरपीएस यानी रीजनल पोजीशनिंग सिस्टम करेगा। इससे देश को कई बड़े फायदे मिलेंगे जैसे सेना को पोजीशनिंग, जियो-मैपिंग और नेविगेशन की सुविधा मिलेगी। इसके अलावा रेल, बस, शिप्स और प्लेन की सटीक जानकारी मिल सकेगी।

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इस विडीयो में देखें आईआरएनएसएस-1 को वैज्ञानिकों ने किस तरह उड़ान दी। लॉन्चिंग के बाद सुनें क्या कहा पीएम नरेन्द्र मोदी ने…

Video Source :https://www.youtube.com/

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