मध्य प्रदेश के कटनी में स्थित “मैहर” माता का मंदिर प्रसिद्ध होने के साथ-साथ रहस्यमयी भी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में रात को 2 से 5 बजे के बीच रुकने वाले की मौत हो जाती है। आज भी यह मंदिर लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। बहुत बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शन करने आते हैं, पर ये लोग कभी रात को नहीं रुकते। मैहर माता को शारदा माता भी कहा जाता है इसलिए यह मंदिर शारदा माता का मंदिर भी कहलाता है।
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यह मंदिर न सिर्फ आस्था का केंद्र है, अपितु इस मंदिर के विविध आयाम भी हैं। इस मंदिर की चढ़ाई के लिए 1063 सीढ़ियों का सफ़र तय करना पड़ता है। इस मंदिर में दर्शन के लिए हर वर्ष लाखों की भीड़ जमा होती है। सितम्बर 2009 से रोप–वे प्रणाली के परिचालन की व्यवस्था शुरू कर तीर्थयात्रियों (विशेष रूप से वृद्धों और विकलांगों) को मां शारदा के दर्शन की सुविधा दी गई है।
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स्थानीय परंपरा के हिसाब से आज तक लोग माता के दर्शन के साथ- साथ दो महान योद्धाओं आल्हा और ऊदल, जिन्होंने पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध किया था उनका भी दर्शन अवश्य करते हैं। ये दोनों भाई शारदा देवी के बहुत बड़े अनुयायी थे। कहा जाता है कि आल्हा को 12 साल के लिए शारदा देवी के आशीर्वाद से अमरत्व मिला था। आल्हा माता रानी को ‘शारदा माई’ तथा देवी मां कह कर बुलाते थे और अब इसी नाम के रूप में माता मां शारदा लोकप्रिय हो गई हैं।
श्रद्धालु दूरदराज से यहां माता रानी का दर्शन करने आते हैं। यहां नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। जब आप मंदिर परिसर में दाखिल होते हैं तब मंदिर के नीचे ‘आल्हा तालाब’ नामक तालाब तथा उसके पीछे पहाड़ी देख सकते हैं। यह दृश्य वास्तव में बहुत सुन्दर है। हाल ही में इस तालाब और आस-पास के क्षेत्रों को साफ किया गया है। इसकी सुंदरता को बनाए रखने के लिए कार्य जारी है।
तीर्थयात्रियों के हित के लिए मंदिर की मरम्मत अभी हाल में ही की गयी है। तालाब से 2 किलोमीटर की दूरी पर आल्हा और ऊदल ने जहां कुश्ती का अभ्यास किया था वो अखाड़े स्थित हैं। इसे देखे बिना श्रद्धालु वापस नहीं जाते। मैहर माता का मंदिर सिर्फ रात्रि 2 से 5 बजे के बीच बंद किया जाता है। इसके पीछे एक बड़ा रहस्य छुपा है। ऐसी मान्यता है कि माता के सबसे बड़े भक्त आल्हा और ऊदल आज तक माता के पास आते हैं। रात्रि 2 से 5 बजे के बीच आल्हा और ऊदल रोज़ मंदिर आकर माता रानी का सबसे पहले दर्शन करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि 2 से 5 बजे के दौरान कोई भी मंदिर में नहीं रुक सकता अन्यथा उसकी मौत पक्की है।