हमारा देश भारत जो पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों के लिए मशहूर है। इसकी सुंदरता को देखने के लिये दूर देश के लोग भी आकर इसका पूर्ण आनंद उठाते हैं। ये पुरानी धरोहरें दिखने में जितनी सुंदर लगती हैं, उतना ही इनके निर्माण से जुड़े तथ्य रहस्यमय बने हुए हैं। इनके बारे में लोगों ने अपनी-अपनी राय भी दी है, पर इस रहस्य से भरे निर्माण कार्य को आज तक विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया है। एक ऐसे ही रहस्यमयी प्राचीन स्थल के बारे में आज हम आपको बता रहे हैं जो गुजरात के अहमदाबाद में स्थित है।
यहां पर स्थित है सीदी बशीर मस्जिद, जो अपने निर्माण को लेकर एक पहेली बनी हुई है। बड़े-बड़े इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट भी इस पहेली को सुलझाने में नाकामयाब रहे। तो जानें इस मस्जिद की खासियत के बारे में…
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गुजरात के अहमदाबाद में स्थित सीदी बशीर मस्जिद जिसे लोग झूलती मीनार के रूप में लोग ज्यादा जानते हैं। इस मस्जिद का निर्माण इस तरीके से किया गया है कि एक मीनार को हिलाने पर दूसरी मीनार एक निश्चित समय के बाद खुद-ब-खुद हिलने लगती है। इसलिए इन मीनारों को झूलती मीनार कहा जाता है। इस अजूबे को देखने के लिये विदेश के लोग भी आते है।
बताया जाता है कि झूलती मीनार वाली इस मस्जिद का निर्माण एक खास तरह की तकनीक से किया गया था। इस पहेली को जानने का प्रयास ब्रिटिश शासनकाल के दौरान भी किया गया था, जिसके लिए इस मस्जिद की काफी खुदाई की गई। बाहर से बड़े-बड़े इंजीनियर बुलाये गये पर वो इसकी तह तक पहुंचने में नाकामयाब ही रहे।
मस्जिद की स्थापना-
इस मस्जिद की स्थापना के बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण 1461-64 के बीच सीदी बशीर के शासनकाल के दौरान सारंग में कराया गया था। उनकी मृत्यु हो जाने के बाद उन्हें इसी मस्जिद के पास ही दफनाया गया था, जिसके कारण इस मस्जिद का नाम सीदी बशीर के नाम से जाने जाना लगा।
मीनारों के हिलने का रहस्य-
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इन मीनारों के झूलते रहने की कई खोजें की गईं। अनुमान लगाया गया कि इनके हिलने या झूलने का प्रमुख कारण मीनारों को बनाने में उपयोग किया गया लचकदार पत्थर है। जिससे ये मीनार बनाई गई थी। प्राप्त तथ्यों के मुताबिक ऐसे पत्थर राजस्थान में पहले पाये जाते थे। ये पत्थर प्राकृतिक रूप से फेलस्पार के घुल जाने से बनते हैं। फेलस्पार एक ऐसा पदार्थ है जो हल्के से हल्के एसिड में घुल जाता है। यही बालू जो मीनार के लिये उपयोग में लिए गए थे ये एसिड के संपर्क में आने से घुलने लगते हैं और इस तरह से अपना स्थान धीरे-धीरे छोड़ने लगते हैं। जिससे अदंर के कणों में लचीलापन आ जाता है और बालू के लचीले होने से मीनार की दीवारें हिलने लगती है। जो साइंस के नियम पर अधारित एक प्रक्रिया होती है।