उत्तर प्रदेश के पीलीभीत नामक जिले में मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना मशहूद अहमद रज़ा की एक साल पहले ही मृत्यु हो गई थी। कुछ समय पहले इनकी लाश को दुबारा निकाला गया। जिसे देखकर सभी को रोंगटे खड़े हो गए। 13 महिने बीत जाने का बाद भी मौलाना की लाश ज्यों कि त्यों ही निकली, उसमें किसी भी प्रकार की ना तो कोई खरोच आई है, ना ही वो सड़ी है। उनकी लाश को निकाले जाने की खबर से पूरे प्रदेश से लाखों श्रद्धालु पीलीभीत में एकत्रित होने लगे, लेकिन सभी के मन में यही प्रश्न आ रहा था कि एक साल बाद भी यह लाश एक स्वस्थ शरीर के जैसे क्यों है और इसे साल भर बाद निकालने के पीछे का कारण क्या है।
यहां हम बता दें कि मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरू के नाम से जानें जाने वाले मौलाना मशहूद अहमद रज़ा पीलीभीत जिला हेडक्वार्टर के निवासी थे। एक मुस्लिम धर्म गुरू होने के नाते वो दीन की शिक्षा देते थें और इसी शिक्षा का प्रचार प्रसार करने के लिए वो पड़ोसी जनपद जिला बलरामपुर के उतरौला टाउन में आकर निवास करने लगे। जहां पर आकर उन्होंने 30 से 40 वर्ष बिताकर दीनी शिक्षा की रोशनी जन-जन तक पहुंचाई। वे हमेशा लोगों के बीच में रहकर अमन शांति और भाई चारे का संदेश देते रहें। वे हया के लोगों के लिए एकता का प्रतीक माने जाते थे।
जिंदगी के आखिरी पड़ाव के समय में सिद्धार्थनगर जिले के इटवा इलाके के पास स्थित डोकम अमया गांव पर आकर निवास करने लगे और यहां पर रहकर वो अपनी दीनी शिक्षा की रोशनी फैलाने लगे। लेकिन यहां पर आने के कुछ ही समय के बाद जब वो काफी बीमार पड़ने लगे। जिसके चलते उन्हे यहां से वापस अपने घर पीलीभीत लौटना पड़ा । यहां पर आने के बाद मुम्बई में इनका इलाज काफी दिनों तक चलता रहा पर वृद्धावस्था की सीढ़ी पार करने के कारण वो ठीक ना हो सके और पिछले साल २१ दिसम्बर के दिन उन्होंने इस दुनिया से आखिरी विदा ले ली। इनके इंतकाल के बाद इनके शव को परिवार वालों नें पीलीभीत में ही दफना दिया।
बताया जाता है कि उनके इंतकाल हो जानें के 13 महिने तक लगातार उनके बेटे को मौलाना स्वप्न में आ कर चेतावनी देते रहे कि उनकी कब्र को खोदकर उन्हें डोकम अमया गांव में दफना दिया जाए। आखिर में मजबूर होकर उनके पुत्र ने प्रशासन से मंजूरी लेने के बाद उनकी कब्र से खोदकर उन्हें सिद्धार्थ नगर के डोकम अमया गांव में ले जाकर दफना दिया। जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग एकत्रित थे।
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