21 मई, वह मनहूस दिन जब पूरे देश में एक महान व्यक्ति के अंत की खबर ने पूरे देश के लोगों को हिला कर रख दिया था और इस हादसे के बाद से भारत की राजनीति को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया? वो महान नेता था हमारे देश में सबसे कम उम्र का बना प्रधानमंत्री राजीव गांधी। ये वो महान व्यक्ति थे जो भारत को 21वीं सदी के निर्माण का सपना संजोये एक विकसित देश का निर्माण करना चाहते थे। ऐसे व्यक्ति को आज के ही दिन हमने हमेशा-हमेशा के लिये खो दिया था। देश के इस युग के खत्म हो जाने पर हमारा देश ऐसी कगार पर खड़ा था, जब देश को किसी मजबूत कंधों की जरूरत थी। देश ने उस मुश्किल दौर में इस महान व्यक्ति को अंतिम विदाई दी। उनकी विदाई के समय हर किसी के मन में बस यही बात आई की….
मरना है तो वतन के लिए मरो…
कुछ करना है तो वतन के लिए करो..
अरे टुकड़ों में तो बहुत जी लिया..
अब जीना है तो मिल कर वतन के लिए जियो..
भूतपूर्व प्रधानमंत्री रही स्व. इंदिरा गांधी की हत्या हो जाने के बाद देश की बागडोर राजीव गांधी को सौपे जाने का फैसला लिया गया और 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी ऐतिहासिक जीत मिली। जिसमें राजीव गांधी प्रधानमंत्री के रूप में चुने गये। लेकिन 5 साल पूरे करने के बाद 1989 में उन्हें सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। अपनी हार को देख राजीव गांधी को आत्ममंथन के दौर से गुजरना पड़ा था। और पार्टी की हो रही आलोचना को देखते हुये उन्होंने नए सिरे से कांग्रेस पार्टी को खड़ा करने की योजना बनाई और निकल पड़े देश की जनता से रूबरू होकर एकजुट होने लिए। इसी योजना के तहत राजीव गांधी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचना चाहते थे। 1991 के आमचुनाव में वो बिना किसी सुरक्षाव्यवस्था के बीच लोगों से रूबरू होने लगे जो कि उनके लिये सबसे बड़े काल के रूप में आया हुआ हादसा बना। हर जगह से दी गयी बड़ी चेतावनियों के बाद भी उन्होंने अपनी सुरक्षा व्यवस्था को अनदेखा कर दिया।
श्रीलंका में शांति सेना भेजने से लिट्टे इसी तरह के मौके की तलाश में था। बताया जाता है कि राजीव गांधी के चुनाव दौरे में जाने से पहले प्रभाकरन ने उनसे भेटं करने दिल्ली आया। उस समय राजीव गांधी ने उससे काफी सख्ती में पेश आकर बातचीत की थी। क्योंकि प्रभाकरन ने तमिल हित की खातिर राजीव के द्वारा बनी शर्तों को मानने से इंकार कर दिया था। जिससे राजीव गांधी ने उसे अपनी शर्तें मानवाने तक के लिये पांच सितारा होटल में नजरबंद करा दिया था। राजीव ने उसे तभी श्रीलंका में घुसने के लिये कहा था जब उसने उनकी शर्तों को मान लेने का आश्वासन दिया। सूत्रों के अनुसार कहा जाता है कि प्रभाकरन की हामी भरने का सबसे बड़ा कारण था श्रीलंका में घुसना जिसके लिये उसने शर्तें मानने की चाल खेल डाली। जिसके बाद से राजीव गांधी का सबसे बड़ा दुश्मन भी बन गया ।
बाद में तमिल आतंकियों में काफी गुस्सा भर आया था जिसका परिणाम यह निकला कि श्रीलंका से भारतीय शांति रक्षा सेना की 1990 में वापसी के तुरंत बाद प्रभाकरन ने राजीव गांधी की हत्या करवा दी लेकिन लिट्टे हमेशा इन आरोपो से इनकार करता आया था। पर बात चाहे लिट्टे की हो या किसी दूसरे मकसद की हमारे देश की नींव अचानक हिल जाने से देश कमजोर हो चुका था। हर लोगों के आंसुओं से बस एक ही शब्द निकल रहा था
आजादी की कभी शाम नही होने देगें
शहीदों की कुर्बानी बदनाम नही होने देगें
बची हो जो एक बूंद भी लहू की
तब तक भारत माता का आंचल नीलाम नही होने देगें