बादशाह अकबर जितने ज्यादा परिपक्व और समझदार शासक थे, उतनी ही ज्यादा उनकी बातें एतिहासिक पन्नों में दर्ज हुई है। उनके बारे में हर किसी की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं होती है। हिन्दू धर्म के प्रति उनके लगाव के कारण ही कहा जाता है कि पूर्वजन्म में वह हिन्दू थे। अकबर के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि जिस समय उनका जन्म अमरकोट (सिंध) के राना वीरसाल के महल में हुआ था। उस समय उनके भविष्य के बारे में जानकारी पाने के लिए उनकी जन्मपत्री को दिखाना था, जिसे संत तुलसीदास के द्वारा दिखाया गया था, तब वे नहीं जानते थे कि ये किसकी जन्मपत्री है और इस जन्मपत्री को देखकर उन्होंने बताया था कि यह राम जी का आदमी है,जो संसार के जनकल्याण के लिए ही पैदा हुआ है।
अकबर के बारे में माना जाता है कि इनका हिन्दी के प्रति ज्यादा लगाव होने का सबसे बड़ा कारण यह भी था कि ये अपने पूर्व जन्म में यह मुकुंद ब्रह्मचारी नाम के संन्यासी थे और मुकुंद ने प्रयाग(इलाहाबाद) में एक इच्छा को पूरा करने के लिए घोर तपस्या भी की थी। इन सभी बातों का विवरण मुर्तजा हुसैन बिलग्रामी की पुस्तक ‘हदिकतुल अकालीम’ में दर्ज है। उन्होंने तपस्या इस इच्छा से की थी कि वो अगले जन्म में एक शक्तिशाली क्षत्रिय राजा के रूप में पैदा हो, जिससे वो भारत की जड़ों को कमजोर करने वाले इस्लाम धर्म का अंत कर सके। पर किसी कारण वश उसकी तपस्या में बाधा आ जाने के कारण उनकी तपस्या अधूरी रह गई और उन्हें मुस्लिम परिवार में एक शासक के रूप में जन्म लेना पड़ा। इसलिए उनके आचरण मुस्लिम लोगों से बिल्कुल मेल नहीं खाते थें। वो हिन्दू धर्म का पालन बड़े ही आदर के साथ करते थे। अकबर का मानना था कि इस्लाम धर्म अभी का बना हुआ है जिसकी उम्र काफी सीमित है, जिसका अंत कभी भी हो सकता है।