आज के समय में यदि त्रेता युग की बात करें तो बड़ा ही आश्चर्य सा लगता है क्योंकि जिन लोगों को को देखा नहीं सिर्फ उनके बारे में हमने सुना और पढ़ा है, उनकी विरासत में मिली वस्तुएं आज भी उन सभी के होने का एहसास दिलाती है। इसी प्रकार से गंगा की लहरों में बहता हुआ पत्थर.. जिसने सभी को आश्चर्य में डाल एक प्रश्न खड़ा कर दिया है कि इतना भारी भरकम पत्थर आखिर पानी की घारा में डूबने के बजाये तैर कैसे रहा है।
इस पत्थर को देख लोग राम के वनवास को याद करते हुए बताते है कि लंका की चढ़ाई के समय सागर को पार करने के लिए नल और नील के हाथों से भगवान राम का नाम लिखकर इन पत्थरों को समुंद्र में फेका गया था जो डूबने के बजाय तैरते थे। पर अचानक इस तरह के पत्थर को देख एक बार फिर प्रश्न खड़ा हो गया है कि यह सचमुच में कोई हकीकत है या फिर चमत्कार या कुछ और?
तैरते पत्थर का अद्भुत दृश्य उत्तर प्रदेश के कानपुर में महाराजपुर थाना क्षेत्र के ड्योढ़ी घाट की गागा नंदी में देखने को मिला। जहां बहती गंगा की धारा में तैरते पत्थर को देख लोग दंग रह गये। जब लोगं ने से उठाकर तट के किनारे लाया तो भारी भरकम पत्थर पर लोग आस्था के चलते फूल चढ़ाने के लिए जुट गये। अभी इस पत्थर को ड्योढ़ी घाट के प्राचीन हनुमान मंदिर में स्थापित कर दिया गया है।
पत्थर में बने हैं प्राचीन लिपि के चिन्ह
गंगा नदी में तैरते हुए मिले इस भारी भरकम पत्थर को देख लोगों के अनुमान के मुताबिक इसका वजन 40 किलों के करीब बताया जा रहा था लेकिन इसका सही वजन मुश्किल से 15 किलो के आसपास होगा। इस पत्थर पर प्राचीन लिपि के कुछ चिन्ह मिले है जिस पर N की आकृति का डिजाइन बनी हुई है।
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