पौराणिक कथाओं में हम सभी ने ना जानें कितनी घटनाओं के बारे में सुना होगा। जिनके बारे में हमेशा ही ये कयास लगाए जाते थे कि इन बातों में कितनी सच्चाई है। पर समय-समय पर कि गई खोजों के साथ जो प्रमाण मिले है उनसे ये साबित हुआ कि पुराने समय में बताई गई बातें पूरी तरह से सत्य है, जिसका जीता जागता उदाहरण है गुजरात के एक छोर में मिली द्वारिका, तो दूसरे छोर के समुद्र में मिला भागवान राम के द्वारा बनाया गया राम सेतु बांध, इन खोजों में मिले अवशेषों का जीता जागता उदाहरण है। इसी तरह से एक और हकीकत सामने आई है जिसके प्रमाणों ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है। देवताओं और दानवों के द्वारा किए गए समुद्रमंथन के प्रमाण मिल चुके हैं, हम बचपन से ही बड़े बुजुर्गों से इसके बारे में सुनते आए है। इसमें देवताओं और दानवों ने मिलकर वासुकि नाग को मन्दराचल पर्वत के चारों ओर लपेटकर समुद्र मंथन कर अमृत निकाला था।
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दक्षिण गुजरात के समुद्र में मिला समुद्रमंथन वाला मन्दराचल पवर्त, जिसका दावा वहां के वैज्ञानिक भी पूरे परीक्षण के आधार पर कर रहें है। गुजरात के पिंजरत गांव के समुद्र में मिला यह पर्वत बिहार के भागलपुर में स्थित मूल मांधार पर्वत जैसा ही है। बिहार और गुजरात के पर्वत एक जैसे ही है। जिसके बीचों-बीच नाग आकृति भी देखने को मिली है।
अमूमन समुद्र के अंदर पाए जानें वाले पर्वत ऐसे नहीं होते हैं, सूरत के आॉर्कियोलॉजिस्ट ने कॉर्बन टेस्ट के परीक्षण के तहत ये बात साबित कर दी है और निष्कर्ष निकाला है कि यह पर्वत समुद्रमंथन वाला ही पर्वत है। जिसकी पुष्टि में अब प्रमाण भी मिलने लगे हैं।
यहां बता दें कि इस पर्वत की खोज सूरत के पिंजरत गांव के समुद्र में प्राचीन द्वारकानगरी के अवशेष को खोजने के दौरान की गई है। जब द्वारिका नगरी की खोज की जा रही थी, तभी समुद्र के अंदर 800 मी.तक की जानें वाली इस खोज में एक ओर पर्वत देखने को मिला, जिसमें घिसाव के निसान साफ नजर आ रहें थे। ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट के द्वारा इस पर्वत के बारे में गहन शोध किए गए । जिसमें पहले बताया गया कि ये निशान घिसाव के नहीं जलतरंगों के हो सकते हैं। लेकिन इसके बाद विशेष कॉर्बन टेस्ट किए जाने के बाद निष्कर्ष निकाला गया कि यह वहीं पर्वत मांधार पर्वत है, जिसका उपयोग पौराणिक काल में समुद्रमंथन के लिए किया गया था। इस पर्वत की जानकारी दो वर्ष पहले मिली है जिसके ठोस प्रमाण अब मिलते जा रहें हैं।