प्रेरणात्मक – झुग्गी-झोपड़ी से करोड़पति बने व्यक्ति की सच्ची कहानी – भाग 1

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स्लमडॉग मिलिनियर फिल्म आपने देखी ही होगी, काफी अच्छी फिल्म थी इस फिल्म में झुग्गी-झोपड़ी के एक लड़के की कहानी थी जो की अपनी मेहनत और प्रतिभा के जरिए करोड़पति बन जाता है। यह फिल्म एक नॉवेल पर आधारित थी जो की एक काल्पनिक कहानी पर बना था पर फिर भी इस फिल्म को सभी ने काफी सराहा था। इस फिल्म को कई नेशनल तथा इंटरनेशनल स्तर के पुरूस्कार भी मिले थे। हमने आपको स्लमडॉग मिलिनियर नामक फिल्म के बारे में इसलिए बताया क्योंकि हम आज आपको जिस व्यक्ति से मिलाने काम कर रहें हैं उस व्यक्ति के जीवन की सच्ची कहानी भी बिल्कुल वैसी ही है जैसी की इस फिल्म में दिखाए गए एक गरीब बच्चे की थी।

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आइये जानते है गरीब से अमीर बने इस बच्चे की सफलता और कठनाइयों भरे जीवन की सच्ची कहानी को –
यह सच्ची कहानी शुरू होती है “सरथ बाबू” से, जो की चेन्नई की झुग्गी-झोपड़ी में पैदा हुए थे और वहीं पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी हुई थी। इसी झुग्गी-झोपडी से आगे चलकर सरथ बाबू ने आईआईएम-अहमदाबाद और बिट्स-पिलानी से पढ़ाई की यात्रा की। पढ़ाई के बाद में लाखों की नौकरी छोड़कर स्वयं का व्यापार किया, हालांकि इस यात्रा में उनको कदम-कदम पर कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा और कई प्रकार के कष्ट उठाने पड़े, पर उन्होंने कभी भी अपनी सफलता की राह में किसी भी चीज को आड़े नहीं आने दिया। सरथ बाबू के जीवन से अन्य लोग भी प्रेरणा ले सकें इसलिए उनको कई किताबो में भी जगह दी गई और उनके जीवन पर आधारित कई कहानियां लोग अपने बच्चों तथा साथियों को सुनाने लगे। सरथ बाबू को कई प्रकार के पुरूस्कार मिले और सम्मान भी पर सरथ बाबू में कहीं भी अहं का कोई चिन्ह नहीं दिखाई दिया।

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घर और उसके हालात –
चेन्नई के मडिपक्कम इलाके की ही एक बस्ती में सरथ बाबू का जन्म हुआ था, परिवार के हालात बहुत ज्यादा ख़राब थे। घर चलाने की सभी जिम्मेदारियां मां के सिर पर ही थी और घर में सरथ बाबू के अलावा 2 बड़ी बहनें तथा 2 छोटे भाई भी थे। सरथ की मां 10वीं. पास थी, इसलिए उनको एक स्कूल में “मिड डे मील” बनाने की नौकरी मिल गई थी। सरथ की मां दिन-रात काम करती थी ताकि परिवार के सभी लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सकें। सरथ बाबू की मां को खाना बनाने के इस काम से महज 30 रूपए ही मिलते थे जो की 5 लोगों के घर का खर्च चलाने के लिए काफी नहीं थे, इसलिए मां ने स्कूल में काम करने के बाद में इडली बेचना भी शुरू किया और इसके अलावा भारत सरकार के “प्रौढ़ शिक्षा केंद्र” के तहत अशिक्षित लोगों को भी पढ़ाना शुरू किया। इस प्रकार से सरथ बाबू की मां ने 3 अलग-अलग समय, 3 अलग-अलग काम शुरू किये और अपने बच्चो के लिए कुछ पैसा कमाना शुरू कर दिए।

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पैसे के लिए बचपन से ही किया काम शुरू –
सरथ को अपनी मां के द्वारा की गई मेहनत देखकर हमेशा लगता था कि वह जब पढ़-लिख जाएंगे तो मां को कभी मेहनत करने की जरुरत नहीं पड़ेगी इसलिए ही सरथ ने शुरू से ही अपनी पढ़ाई में ध्यान देना शुरू कर दिया था। सरथ बाबू क्लास में हमेशा फर्स्ट आते थे और इसके साथ-साथ ही वे अपनी मां के साथ में सुबह जाकर इडली बेचने में मदद करते थे। झुग्गी के गरीब लोग सुबह नाश्ते में इडली खरीद कर नहीं खा सकते थे, इसलिए सरथ बाबू अपनी मां के साथ में अमीर लोगों की बस्ती में इडली बेचने जाते थे।

शरथ बाबू पढ़ने के साथ में ही अपनी मां की भी मदद करते थे पर शरथ बाबू आगे कैसे पढ़ पाये, उनके आगे की पढ़ाई में कैसी परेशानियां आई और उनको उन्होंने किस प्रकार हल किया। यह सब आप पढ़िए हमारे इस पोस्ट के भाग 2 में। अपने विचार जरूर दें ताकि हम आपके अनुसार अपने आलेखों में सुधार कर सकें।

 

दूसरे भाग के लिए पढ़ें:

 

shrikant vishnoi
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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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