रामायण की बात करें, तो आप सभी ने राम से जुड़े पात्रों को भलिभांति समझा और जाना होगा पर इसी से जुड़े पात्रों में सीता, जिन्होनें रामायण को आगे बढ़ाने में राम के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उस जनक की जानकी को कोई कैसे भूल सकता है, पर क्या आप उस जानकी के पिता राजा जनक के बारे में जानते है कि आखिर उनका जन्म कैसे हुआ था। इस बात को कोई नहीं जानता पर आज हम राजा जनक के इस राज से पर्दा खोल रहे जिसके बारे में सभी लोग आज तक अंजान थे।
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त्रेतायुग के समय में जहां अयोध्या के राजा दसरथ थें तो मिथिला के राजा जनक हुआ करते थे। जो माता सीता के पिता कहलाए जाते है। जिन्होंने बड़े लाड-प्यार के साथ सीता का लालन-पालन कर उन्होंने राम के साथ विवाह कर अयोध्या नगरी की बहू कहलाने का अधिकार दिया था।
पर आप राजा जनक के विषय में क्या जानते है? बताया जाता है कि इनका सही नाम ‘सिरध्वज’ था। जो निमि के पुत्र थे। इनके छोटे भाई का नाम ‘कुशध्वज’ था। राजा जनक'(सिरध्वज’) को अध्यात्म के साथ तत्त्वज्ञान का सबसे अच्छा अनुभव था, जिसके कारण वो विद्वान के रूप में भी जाने जाते थे।
कहां जाता है कि जनक के पूर्वज सूर्यवंशी और इक्ष्वाकु के पुत्र निमि से उत्पन्ने होने वाले वशंज है जो निमि या विदेह को अपना कुल मानते है। राजा निमि जब राजा की गद्दी पर विराजे तो उस दौरान उनके वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं था। उन्होंने पुत्र की प्राप्ति की इच्छा के लिए एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होनें इसे पूर्ण करने के लिए ऋषि वशिष्ठ को अपने कुल गुरू होने के नाते पुरोहित के रूप में आमंत्रित किया था। लेकिन वो उस समय राजा इन्द्र के कामों में व्यस्त होने के कारण उस पूजन में सम्मिलत नहीं हो सके। जिसके कारण राजा ने उनके स्थान पर ऋषि गौतम के साथ अन्य ऋषियों को बुलाकर यत्र सम्पन्न कराया तो यह बात ऋषि वशिष्ठ को बुरी लगी। जिससे क्रोधित हो उन्होंने राजा निमि को शाप दे दिया। और इस बात से नराज हो राजा निमि ने भी वशिष्ठ को शाप दिया। जिसके कारण दोनों ही जलकर भस्म हो गए। तब वहां पर आये ऋषि मुनियों ने दिव्यज्ञान से निमि के शरीर को यज्ञ पूर्ण होने तक सुरक्षित रखा। क्योंकि राजा निमि को कोई संतान नहीं थी। जो उनके ना रहने के बाद इस यज्ञ को पूरा कर सके। इसके बाद ऋषियों मुनियों नें उनके पार्थिव शरीर का मंथन किया। जिससे एक पुत्र का जन्म हुआ।
इस बालक का जन्म शरीर को ‘मथने’ से हुआ थी इसलिए इस पुत्र का नाम ‘मिथि’ पड़ गया। मृत शरीर से उत्पन्न होने के कारण जनक। विदेह वंश में होने के कारण ‘वैदेह’ और मंथन के कारण मिथिल और इसी नाम के कारण यहां की बसी नगरी का नाम पड़ा ‘मिथिला’ नगरी हुआ।
कुछ समय बीत जाने के बाद एक दिन जब राजा ‘सिरध्वज’ ने सोने की सीत(हल) से मिट्टी को जोता तो सीत एक गड्डे में जाकर फंस गया। देखने पर पाया की जमीन में एक संदूक पड़ा हुआ था उस दिव्य संदूक को जब धरती से बाहर निकाला गया तो उसमें एक सुंदर सी बच्ची मिली। जो बाद में राजा जनक की लाडली जानकी मतलब सीता कहलाई।