सावन माह जल तत्व प्रधान माह है। यह माह भगवान शिव की आराधना तथा उपासना को समर्पित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस समय तक भगवान विष्णु अपने शयन कक्ष में जा चुके होते हैं इसलिए तीनों लोगों की अध्यक्षता भगवान शिव के हाथ में ही होती है।
तथ्य 1 –
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माना जाता है की सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल कनखल (हरिद्वार) में निवास करते हैं। यही कारण है की इस माह में असंख्य शिवभक्त हरिद्वार से ही कांवड़ में गंगाजल भर कर लाते हैं।
तथ्य 2 –
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मान्यता है की श्रावण माह यानि सावन माह की उत्पत्ति श्रवण नक्षत्र से हुई है। इस नक्षत्र का स्वामी चंद्रमा है और वे जल तत्व के प्रतीक हैं। चंद्रमा भगवान शिव के शीश पर स्थित है और जल भगवान शिव को अति प्रिय है। अतः माना जाता है की श्रावण मास में हरिद्वार से कांवड़ में जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करने से वे बहुत प्रसन्न होते हैं तथा भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं।
तथ्य 3 –
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शिव महापुराण की एक कथा के अनुसार भक्तों की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव तथा देवी पार्वती ने अपने अपने रूप बदल लिए। भगवान शिव ने कोढ़ी का रूप बनाया तथा देवी पार्वती ने एक सुंदर स्त्री का। सभी लोकग देवी पार्वती से पूछते की आप इस कोढ़ी के साथ क्यों हैं। तब वे बताती की “यदि कोई व्यक्ति ऐसा मिल जाए जिसने एक हजार अश्वमेघ यज्ञ किये हों और वह इनको स्पर्श कर दें तो इनका कोढ़ तुरंत सही हो जायेगा। मैं ऐसे ही किसी व्यक्ति को ढूंढ रही हूं।” एक ब्राह्मण व्यक्ति ने जब यह बात सुनी तो उसने कोढ़ी रूपधारी भगवान शिव को स्पर्श कर दिए और वे कोढ़ से तुरंत मुक्त हो गए।
देवी पार्वती ने ब्राह्मण से पूछा की आपने इतने यज्ञ किस प्रकार से किये। ब्राह्मण ने उस समय कांवड़ यात्रा का महत्त्व बताते हुए कहा की “देवी मैं कई वर्ष से हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी से गंगाजल लेकर कांवड़ यात्रा कर रहा हूँ। इस यात्रा में बढ़ता एक एक कदम एक हजार अश्वमेघ यज्ञों के बरावर फलदायी होता है। अतः मुझे विश्वास था की मेरा काफी पुण्य अब तक हो गया होगा सो मैंने आपने पति को स्पर्श कर कोढ़ मुक्त कर दिया।” इस प्रकार के महत्त्व को जानकर लाखों शिवभक्त लोग हरिद्वार से सावन माह में कांवड़ यात्रा करते हैं और गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।