सावन माह में लोकग भगवान शिव की उपासना करते हैं और जलाभिषेक भी करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं की इस माह में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का क्या महत्त्व है। आज हम आपको इस बारे में ही जानकारी दे रहें हैं। सावन के महीने को भगवान शिव का प्रिय माह माना जाता है। इस माह के सोमवार में लोग व्रत कर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है की जलाभिषेक करने मात्र से शिव प्रसन्न हो जाते हैं। आइये अब आपको बताते हैं की सावन माह में शिव को जलाभिषेक करने का क्या महत्त्व है।
1 – इस समय शिव ही होते हैं प्रमुख देव
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मान्यता है की सावन माह से पहले भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। यह समय चार माह का होता है इसलिए इसको “चौमासा” कहा जाता है। यह समय साधू संतों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस समय में सृष्टि के सञ्चालन का कार्य शिव के हाथ में ही होता है। इस समय पर शिव ही प्रमुख देव होते हैं। अतः इस माह में शिव पर जलाभिषेक करने से वे प्रसन्न हो जाते हैं।
2 – इस समय देवताओं ने किया था जलाभिषेक
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इस संबंध में शिव पुराण में कथा आती है की समुद्र मंथन से जो हलाहल विष निकला था। उससे सृष्टि को बचाने के लिए शिव ने ही विष को अपने गले में धारण किया था और नीलकंठ कहलाये थे। उस समय उनका शरीर भी विष की गर्मी से तप रहा था इसलिए इस माह में सभी देवताओं ने मिलकर उन पर जलाभिषेक किया था और वे इससे प्रसन्न हुए थे।
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3 – सावन माह में पृथ्वी पर होते हैं शिव
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एक मान्यता यह भी है की सावन माह में ही शिव विवाह हेतू अपनी ससुराल कनखल में आये थे। उनका स्वागत आर्ध्य तथा जलाभिषेक से ही किया गया था। माना जाता है की प्रत्येक सावन को शिव पृथ्वी पर ससुराल में ही विश्राम करते हैं। अतः सामान्य लोगों को उनकी कृपा पाने का यह अच्छा मौक़ा होता है।
4 – ऋषि मार्कण्डेय ने सावन में की थी शिव तपस्या
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शिव पुराण की कथानुसार ऋषि मार्कण्डेय ने अपनी लंबी आयु तथा अकाल मृत्यु से बचने के लिए सावन माह में ही भगवान शिव की उपासना की थी। इससे ही उनको अकाल मृत्यु से छुटकारा मिला था। अतः लोगों की धारणा है की सावन माह में की गई शिव उपासना का फल अवश्य मिलता है। इसके अलावा शिव पुराण के अनुसार शिव स्वयं जल तत्व से आपूरित हैं। यदि कोई उनका जलाभिषेक करता है तो वह उत्तम से भी उत्तम फल का भागी होता है। इस प्रकार अब आप जान ही चुके होंगे की सावन माह में भगवान शिव का जलाभिषेक करने का कितना महत्त्व होता है।