अब तक आप अमृतसर वाले गोल्डन टेम्पल के बारे में ही जानते होंगे। असल में वही सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है परंतु वास्तव में हमारे देश में गोल्डन रेल भी चलती है। इस बात की जानकारी बहुत कम लोगों को है। आइये आज हम आपको इस रेल की विस्तृत जानकारी यहां दे रहें हैं। इस रेल का असल नाम “गोल्डन टेंपल मेल” है। रेलवे में इस ट्रेन को “फ्रंटियर मेल” के नाम से भी जाना जाता है। आपको बता दें की दिल्ली से टपरी मार्ग पर चलने वाली यह सबसे पुरानी रेल है। इस मार्ग पर चलते हुए 1 सितंबर 2018 को यह ट्रेन अपने 90 वर्ष पुरे कर लेगी।
अंग्रेजों की पसंद थी यह ट्रेन –
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यह गोल्डन टेंपल मेल ट्रेन काफी पुरानी तो है ही लेकिन इसकी यह ख़ास बात है की पुरानी होने के कारण ही यह देश की आजादी की मूक गवाह भी है। ब्रिटिश हुकूमत में इस ट्रेन को अंग्रेज काफी पसंद करते थे। आज के कई दिग्गज अभिनेताओं ने भी अपने कैरियर की शुरुआत में सफर किया है। 1 सितंबर 1928 को यह ट्रेन प्रारंभ हुई थी और तब से यह लगातार इस मार्ग पर अनवरत चल रही है।
इतिहास में सिर्फ एक बार रुकी है यह ट्रेन –
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इस गोल्डन टेंपल मेल ट्रेन की एक ख़ास बात यह भी है की मौसम का मिजाज चाहे जैसा भी रहा ही। यह ट्रेन कभी अपने गंतव्य पर जाने से नहीं रुकी। हां उत्कल ट्रेन हादसे के समय इसका रूट डायवर्ट कर दिया गया था। उस समय इसको शामली से होकर निकाला गया था। आपको बता दें की यह ट्रैन इतिहास में सिर्फ एक बार उस समय रुकी थी। जब 21 अगस्त 2017 को डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम को कोर्ट द्वारा दोषी करार दे दिया गया था। उस समय पर इस ट्रेन को 3 दिन के लिए रोका गया था।
यह है इसका पुराना इतिहास –
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स्टेशन अधीक्षक इस गोल्डन टेंपल मेल ट्रेन के बारे में बताते हुए कहते हैं की “पाकिस्तान में जन्में पृथ्वी राज कपूर तथा अंग्रेजों के बोलार्ड पियर मोल को यदि भारत आना होता था तो यही ट्रेन उनकी पहली पसंद थी। जिस समय देश का बटवारा नहीं हुआ था उस समय यह ट्रेन पाकिस्तान के लाहौर और अफगानिस्तान से होते हुए मुंबई सेंट्रल तक का सफर पूरा करती थी। इस गोल्डन टेंपल मेल ट्रेन को “फ्रंटियर मेल” नाम 1934 में मिला था। इस ट्रेन में 24 कोच हैं और यह आप में 34 टाटा डाउन में 35 स्टाप पर रूकती है। ख़ास बात यह है की इस ट्रेन को 84 वर्ष पहले ही एसी कोच मिल गया था। उस समय यह ट्रेन देश की पहली एसी कोच वाली ट्रेन थी। इसके अलावा यह ऐसी पहली ट्रेन थी जिसमें रेडियो सुनने की भी सुविधा दी गई थी।