भारत में बहुत से धार्मिक स्थल मौजुद हैं, इन्हीं में से एक है उज्जैन। यह नगर प्राचीन काल में महाराज विक्रमादित्य की राजधानी हुआ करता था। इसको “कालिदास की नगरी” के नाम से भी जाना जाता है। अपने देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक “महाकाल ज्योतिर्लिंग” यहीं उज्जैन में स्थित है। इस महान तथा प्राचीन नगर का वर्णन तथा महत्त्व अनेक श्रुतियों, ब्राह्मण ग्रंथो तथा बौद्धिक ग्रंथों में अंकित है। महाकाल ज्योतिर्लिंग के अलावा यहां एक अन्य देव स्थान भी है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह स्थान है मंगलनाथ मंदिर। आज हम आपको इसी देव स्थल के बारे में जानकारी दे रहें हैं। आइये विस्तार से जानते हैं इस बारे में।
मंगलनाथ मंदिर का ज्योतिषीय महत्त्व
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आपको बता दें कि मंगलनाथ मंदिर का ज्योतिषीय महत्त्व है। दरअसल पुराणों में इस स्थान को मंगल ग्रह का जन्म स्थल बताय गया है। अतः जिन लोगों की कुंडली में मंगल संबंधी दोष होते हैं। वे इसी स्थान पर पूजा पाठ करने के लिए आते हैं। मंगलवार के दिन इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। आपको बता दें कि इस मंदिर का पुनर्निर्माण सिंधिया राजघराने ने कराया था।
मंगलनाथ की पौराणिक कथा
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मंगलनाथ मंदिर से सम्बंधित एक पौराणिक कथा भी है। यह कथा मंगल ग्रह की उत्पत्ति तथा उसके लाल होने के रहस्य को अनावृत करती है। कथा के अनुसार अंधकासुर दैत्य ने घोर तप करके भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया तथा उसके बाद उनसे यह वरदान मांगा की उसके रक्त की एक बूंद से हजारों राक्षसों का जन्म हो जाए। वरदान पाने के बाद उसने धरती पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया। इसी के बाद जब पृथ्वी के लोगों ने भगवान शिव से प्रार्थना की तो भगवान शिव ही उसका संहार करने के लिए उज्जैन में प्रकट हुए। इन दोनों ने मध्य घोर युद्ध हो रहा था। इस बीच भगवान शिव को पसीना आ गया और उनके पसीने की एक बूंद धरती पर गिर गई। जिसके परिणाम स्वरुप उज्जैन की धरती फट गई और तब मंगल ग्रह का जन्म हुआ। अंधकासुर का वध करने के बाद उन्होंने मंगल ग्रह में ही उसका संपूर्ण रक्त समाहित कर डाला। जिसके कारण उसका रंग लाल पड़ गया। पौराणिक कथा कहती है कि उस समय से ही मंगल ग्रह का रंग लाल है।