कहते हैं लक्ष्मी हर किसी के पास ज्यादा दिन तक नहीं रुकती, फिर वो चाहे राजमहल हो या फिर गरीब की झोपड़ी। धन की देवी लक्ष्मी किसी को राजा से रंक बना देती हैं, तो किसी को रंक से राजा…। इस प्रकार का बदलाव काफी पहले समय से होता आया है। उदाहरण के लिए राणा प्रताप जैसे य़शस्वी राजा जिन्हें जंगल में रहकर अपने बच्चों के साथ घास की रोटी तक खानी पड़ी थी। राजसी ठाठबाट और शाही शान के साथ रहने वाले कुछ ऐसे और भी राजा भी हुए जिन्होंने अपना आखिरी वक्त गुमनामी के अंधेरों में गुजारा। इन्हीं में से एक रहे ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से करीब 60 किमी दूर टिगिरिया रियासत के राजा ब्रजराज महापात्रा।
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राजा ब्रजराज के पूर्वजों ने राजस्थान से टिगिरिया जाकर एक नई रियासत बसाई थी। कभी आलीशान महल, शाही खान-पान के साथ 25 कारों के मालिक रहे इस राजा ने अपने आखिरी वक्त एक झोपड़े में भूखे पेट रिक्शा चलाकर गुजारे थे। अभी हाल ही में कुछ दिन पहले उनकी मौत हो गई। 30 नवंबर को 95 साल के इस पूर्व राजा की मौत का बहुत से लोगों को पता ही नहीं चल पाया।
राजा ब्रजराज की मौत के साथ ही टिगिरिया रियासत का भी अंत हो गया। राजा ब्रजराज ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के राजकुमार कॉलेज से डिप्लोमा किया था। जवानी में इस राजा को कार चलाने का बड़ा शौक था। वे अक्सर कार से फार्राटे भरकर कोलकाता की सैर पर जाते। उस दौर में ब्रजराज भारतीय बाजारों में आने वाली ज्यादातर नई कारों की सवारी करते थे। ब्रजराज के पूर्वज 12वीं शताब्दी में राजस्थान से ओडिशा गए थे। इनके पूर्वजों ने टिगिरिया नेब रियासत की नींव रखी थी।
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अपने समय में पूरे राजसी-ठाठ बाठ व अय्याश किस्म के होने के काऱण इनके हाथ से रियासत धीरे-धीरे छूटती नजर आने लगी। एक समय ऐसा आया कि अय्याशी और सरकार की सख्ती के चलते राजा ब्रजराज की आर्थिक स्थति इतनी खराब हो गई कि अपना गुजारा करने के लिए उन्होंने अपना महल सरकार को सिर्फ 75 हजार रुपए में बेच दिया। इसके बाद तो वे पूरी तरह सड़क पर आ गए और दाने-दाने के मोहताज बन गए।
आखिरी समय ऐसा आया कि अंतिम समय में भी उनके पास कोई नहीं था। सिर्फ एक आखिरी चाहत थी कि पुरानी टिगिरिया रियासत के लोग 10-10 रुपए इकट्ठा कर उनका अंतिम संस्कार करें पर वो भी इच्छा पूरी ना हो सकी।