दशहरा पर्व – आखिर क्यों है इस पर्व नाम “दशहरा”, जानिए इस पर्व के पीछे का असल संदेश

0
693

दशहरा पर्व प्राचीन काल से भारत भूमि पर ही नहीं बल्कि हर उस जगह मनाया जाता रहा है जहां पर हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोग रहते हैं, सामान्य दृष्टि से देखने पर यह पर्व भगवान राम के जीवन से जुड़ा हुआ है और इस दिन लोग भगवान राम का पूजन आदि करके इस पर्व को मनाते हैं पर बहुत ही कम लोग जानते हैं इस पर्व को “दशहरा” नामक शब्द ही क्यों दिया गया, आखिर इस पर्व में ऐसा क्या है कि इसको हर व्यक्ति “दशहरा” के नाम से ही पुकारता है। जिस प्रकार हर शब्द के पीछे कोई न कोई घटना अवश्य होती है उसकी प्रकार इस दशहरा नामक शब्द के पीछे भी एक ऐतिहासिक घटना है इसका उल्लेख कर आज हम आपको यहां बता रहें हैं ताकि आप भी इस पर्व के पीछे के असल सत्य को सही से जान सकें तो आइये जानते हैं दशहरा पर्व का रहस्य।

dussehra1Image Source:

भगवान राम और दशहरा –
दशहरा पर्व भगवान राम से भी जुड़ा हुआ है, भगवान राम से जुड़ा होने के कारण ही इसको “विजय दशमी” भी कहा जाता है, असल में भगवान राम ने इस दिन ही रावण का वध किया था और उस पर विजय प्राप्त की थी। रावण के दस सिर और दस हाथ थे इसलिए उसको “दशानन” भी कहा जाता था और इस दशानन का ही भगवान राम ने वध कर श्री लंका पर विजय प्राप्त की थी इसलिए इस पर्व को “दशहरा” या “विजय दशमी” कहा जाता है।

dussehra2Image Source:

भगवती आदि शक्ति और दशहरा –
इस संबंध में भी रामायण काल की एक घटना जुड़ी है, उसके अनुसार भगवान राम ने रावण वध से पहले भगवान ब्रह्मा से “चंडी पूजन” की आज्ञा लेकर उसको संपन्न किया, जिसके कारण मां भगवती आदि शक्ति ने भगवान राम को विजय श्री का आशीर्वाद दिया और राम रावण के ऊपर विजय प्राप्त कर सकें थे इसलिए भी इस पर्व को “विजय दशमी” कहा जाता है।
दूसरी और “देवी भागवत” नामक ग्रन्थ में भी इस पर्व को लेकर एक घटना का उल्लेख हुआ था, जिसके अनुसार दानवराज महिषासुर ने अपने तप से अनेक शक्तियों को अपने वश में कर लिया और धरती पर अनेक प्रकार से आतंक मचाता हुआ, मानजाति को ख़त्म करने पर लगा हुआ था। जिसके कारण धरती पर हाहाकार मच गया था, इसलिए सभी देवताओं ने अपनी सम्मिलित शक्ति से मां दुर्गा का निर्माण किया और देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक दानव का अंत किया।

dussehra3Image Source:

इस दानव का अंत जिस दिन हुआ था वह “दशहरा यानी विजय दशमी” का ही दिन था इसलिए इस पर्व को विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। इस त्योहार के मानाने के पीछे का असल संदेश यह है कि प्रत्येक व्यक्ति इस बात को अच्छे से समझ जाए कि असत्य और नकारात्मक शक्तियां चाहें कितनी भी अधिक बलशाली क्यों न हों यदि आप सत्य के मार्ग पर हैं तो विजय आपकी ही होगी। इस प्रकार से यह पर्व न सिर्फ मानव को सत्य के पथ पर चलने का संदेश देता है बल्कि सभी प्रकार की नकारात्मक शक्तियों पर विजय प्राप्त कर अपने जीवन को ऊंचा उठाने की भी प्रेरणा देता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here