देवी काली के बारे में आप जानते ही होंगे, पर उत्तर प्रदेश के “देवी कालिका मंदिर” के बारे में आप शायद नहीं जानते होंगे, ये मंदिर प्राचीन काल से हिंदू-मुस्लिम लोगों के भाई चारे का प्रतीक बना हुआ है। आज हम आपको इसी कालिका देवी मंदिर के बारे में ही बता रहें हैं। आपको बता दें कि यह प्राचीन मंदिर उतर प्रदेश के इटावा जिले के “लखना” नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है तथा मुगलकाल से यह हिंदू मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक बना हुआ है। इस मंदिर को 9 सिद्धपीठों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के पहलू में ही बाबा सैयद की दरगाह है, इसी कारण हिंदू तथा मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोग यहां आते हैं। चैत्र तथा शारदीय नवरात्रि में इस मंदिर में मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें दूर-दूर से भक्त आकर देवी कालिका के दर्शन करते हैं।
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राजा जसवंत राव ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, यही इस क्षेत्र के राजा थे। यह समय अंग्रेजों के काल का था। राजा जसवंत राव देवी कालिका के बड़े भक्त थे और वे प्रतिदिन मां कालिका के दर्शन करने के लिए जाया करते थे। बरसात के मौसम में नदी में बाढ़ के कारण जब वे नहीं जा पाए, तब उनको बहुत दुख हुआ और उन्होंने अन्न जल का त्याग कर दिया। देवी कालिका राजा जसवंत राव की भक्ति से द्रवित हो गई और उन्होंने जसवंत सिंह को सपने में दर्शन दिए और कहा कि वे जसवंत सिंह के क्षेत्र में ही रहेंगी, अततः उनको “लखना मैया” के नाम से जाना जाएगा। इस सपने के बाद एक दिन राजा जसवंत राव को उनके एक व्यक्ति ने बेरीबाग में देवी के प्रकट होने की जानकारी दी। राजा जसवंत राव ब्राह्मण जब उस स्थान पर गए, तो उन्होंने देखा कि पीपल का वृक्ष स्वयं जल रहा है तथा चारों और से घंटे घड़ियाल की ध्वनि आ रही है। इसके बाद राजा जसवंत राव ने इस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण कराया तथा विधि पूर्वक 9 देवियों की स्थापना कराई। यही मंदिर आज कालिका देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर परिसर में ही बाबा सैयद की दरगाह है। यहां आकर मुस्लिम लोग चादर आदि चढ़ाते हैं तथा दुआ पढ़ते हैं। इस प्रकार से कालिका देवी मंदिर में हिंदू तथा मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोग आते हैं और इसी कारण यहां के दोनों ही धर्म के लोगों में प्राचीन काल से भाईचारा बना हुआ है।