यहां लगता है दुनिया का सबसे पुराना भूतों का मेला

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अभी तक आपने अपने जीवन में बहुत प्रकार के मेले देखे होंगे, जिनमें ज्यादा से ज्यादा लोगों की भीड़ जुटती होगी। यह तक कि आप में से बहुत से लोग कुंभ जैसे विशाल मेले में भी गए होंगे, जहां पर मानव की गिनती ही नहीं की जा सकती। इन सब मेलों में एक बात जरूर कॉमन है कि यहां मानवों की भारी-भरकम भीड़ रहती है, पर हम आज आपको ऐसे मेले के बारे में बता रहे हैं जहां मानव नही भूतों की भीड़ लगती है। हम आपको भूतों के मेले के बारे में जानकारी देंगे और वो भी सबसे प्राचीन मेले के बारे में। जी हां भूतों के इस मेले को लगभग 350 साल पुराना माना जाता है।

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यह मेला उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर अहरौरा के बरही गांव में बाबा बेचुबीर की चौकी पर लगता है। इस मेले में भूतों की भीड़ लगती है। जहां पर कथित तौर पर भूत, डायन और चुड़ैल से मुक्ति दिलाई जाती है। यह मेला लगभग 350 सालों से चला आ रहा है। इस मेले में इंसानों की नहीं भूत, चुड़ैल और डायनों का जमावड़ा लगता है। भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से परेशान लोगों की भीड़ जुटती है। लोग अंधविश्वास के घेरे में इस कदर फंसे हैं कि कोई कहता है कि उनके सिर पर पड़ोसी ने भूत बैठा दिया है, तो किसी को सन्नाटे में भूत ने पकड़ लिया है। किसी को श्मशान के पास से गुजरते वक्‍त भूत सवार हो गया है। अंधविश्वास के इस मेले में फरियादी तो इंसान होता है, लेकिन उनका कहना होता है कि उन पर कब्जा भूत, चुड़ैल, डायन जैसे लोगों का होता है। उन्हें सिर्फ बेचूबीर बाबा ही मुक्ति दिला सकते हैं।

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बताया जाता है कि तीन दिनों तक चले एक युद्ध में बेचूबीर बाबा ने अपने प्राण त्याग दिए और उसी जगह पर उनकी समाधि बनाई गई। तभी से यहां मेला लगता है, जो तीन दिनों तक चलता है। यहां नि:संतान लोग भी आते हैं।

यह भी कहा जाता है कि बेचूबीर भगवान शंकर की साधना में हमेशा लीन रहते थे। परम योद्धा लोरिक इनके परम भक्त थे। एक बार लोरिक के साथ बेचूबीर इस घनघोर जंगल में ठहरे थे और भगवान शिव की आराधना में लीन थे। तभी उनके ऊपर एक शेर ने हमला कर दिया। जिसके कारण बाबा की मृत्यु हो गई। तभी से यहां बाबा की समाधि को बना दिया गया और मेले की शुरूआत कर दी गई।

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हालांकि आज के वैज्ञानिक युग में इसको अंधविश्वास ही कहा जाएगा। यह अन्धविश्वास का खेल सरेआम पुलिसवालों के सामने होता है, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई आगे नहीं आता। तकनीकि और सूचना क्रांति के दौर में हम भले ही अंतरिक्ष और चांद पर घर बसाने को सोच रहे हों, लेकिन अंधविश्वास अभी भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है।

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