हमारे देश में ऐसे कई मंदिर है जो अपने चमत्कारिक कारणों से जाने जाते है और इन आलौकिक चमत्कारों के कारण ही इन मंदिरों की प्रति लोगों की आस्था और अधिक बढ़ जाती है, जिस कारण इन मंदिरों में भगवानों के दर्शनो के लिए दूर देश के लोग भी अपने आप ही खींचे चले आते है। अपने ही देश का एक ऐसा ही चमत्कारिक मंदिर सदियों से लोगों की आस्था की केन्द्र बना हुआ है, कहा जाता है इस मंदिर में ही मां चामुंडा ने अपना विकराल रूप दिखाया था।
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मेहंदी पुर बालाजी के पास स्थित इस मंदिर में नवमी के दिनों में काफी संख्या में लोग इकट्ठा होते है। नवमी के दिनों में यहां पर माता की विशेष पूजा रखी जाती है। इस मंदिर में पहुंचने के बाद एक नास्तिक की आस्था भी मां के प्रति होने लगती है, क्योंकि इस मंदिर में ही मां ने अपना गला काट कर भक्तों को अपना असली रूप दिखाया था।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि महंदीपुर बालाजी का मंदिर बिजासन टेकरी पर बना हुआ है, जहां पर चामुंडा माता की मूर्ति विराजमान है। जिन्हें बिजासन देवी के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्र के दिनों में इनकी विशेष प्रकार से पूजा होती है। जिसे देखने के लिए यहां पर काफी भक्त आते हैं। शक्ति रूपी देवी चामुंडा माता के इस मंदिर में करीब 25 सालों से अखण्ड ज्योति जल रही है और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि ये जोत किसी तेल या घी से नहीं, बल्कि पानी से जल रही है। जिस पर किसी भी आंधी या तूफान का कोई असर नहीं हो पाया है। इस दीपक में रोज किसी कुंवारी लड़की के हाथों से पानी डाला जाता है।
बताया जाता है कि एक इस मंदिर में कुछ लोग मां की परीक्षा लेने के लिए आए थे और वह जानना चाहते थे कि यहां की देवी किस प्रकार के चमत्कार दिखाती है। उन्होंने अपने ही सामने एक कुंवारी कन्या को मंदिर में बुलाया और उसके हाथों से ही दीपक में पानी डालवाकर उसे जलाने को कहा, इसके बाद कन्या ने दीपक में पानी डाला और मां का दीपक जलाया तो मंदिर में मां के आशिर्वाद से दीपक जल उठा और पूरा मंदिर प्रकाशमान हो गया। जिसे देख मां की परीक्षा लेने आए सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए और मां के सामने सिर झुकाकर अपने किए की माफी मांगने लगें।
यहां के लोगों ने कहना है कि कई वर्षों पहले यहां पर मां ने खुद आकर सभी को अपना रूप दिखाया था। लोगों ने बताया कि एक बार अपनी कुटिया से मां हाथ में पूजा का खप्पर लेकर बाहर निकली थी, उनके सामने तब सभी लोगों ने कुटिया से मंदिर की ओर जाने वाले में रास्ते में फूल बिछा दिये थे। उसके बाद उन्हें लाल चुनरी उड़ाई गई थी। तभी मां ने नदी में हाथ डालकर तलवार बाहर निकाली और अपनी गर्दन पर प्रहार किया। जिससे वे खून से लथपथ हो गई और सभी को दर्शन देने के बाद अपने गर्भगृह में वापस चली गई।