मुमताज की मृत्यु बेहद भयावह और कठिनता से हुई थी, जानिए कैसी थी वह रात

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शाहजहां ने जिस मुमताज के लिए दुनिया का सबसे सुंदर मकबरा ताजमहल बनवाया था, क्या आप जानते हैं कि उन मुमताज की मृत्यु कितनी भयावह और कठिनता से हुई थी। वर्तमान में इस बात को बहुत ही कम लोग जानते हैं, पर अब्‍दुल हमीद लाहौर और आमिर सालेह नामक इतिहासकारों ने इस घटना को “बादशानामा” नामक पुस्तक में बहुत ही मार्मिक ढंग से लिख कर अब इस राज को दुनिया के सामने बेपर्दा कर दिया है। इसके अलावा ‘ताजमहल या ममी महल’ किताब के लेखक अफसर अहमद ने भी इस किताब में उन बेहद गमगीन पलों का वर्णन किया है।
इन दोनों दस्तावेजों की मानें तो मुमताज की मौत प्रसव पीड़ा से लगातार 30 घंटे तक जूझने के बाद हुई थी।

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ये है इन किताबों में बताया असल राज़-
इतिहासकारों और इन किताबों की मानें तो शाहजहां मुमताज को बहुत ज्यादा प्यार करते थे और उनको छोड़ कर वह कभी दूर नहीं जाना चाहते थे। उस समय खान जहां लोदी ने डेक्कन (साउथ इंडिया) में विद्रोह किया हुआ था और उसको काबू में करने के लिए शाहजहां का बुरहानपुर जाना जरूरी था, परंतु उस समय मुमताज गर्भवती थीं और उनके गर्भ का समय भी पूरा हो चुका था। इसके बावजूद शाहजहां उनको आगरा से 787 किलोमीटर दूर धौलपुर, ग्‍वालियर, मारवाड़ सिरोंज, हंदिया होते हुए बुरहानपुर साथ में ले गये।

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इतनी लंबी यात्रा करने की वजह से मुमताज बहुत बुरी तरह से थक गई थीं और इसका असर उनके गर्भ पर भी पड़ा था, जिसके चलते उन्हें प्रसव पीड़ा शुरू हो गई थी। 16 जून 1631 की रात को मुमताज की प्रसव पीड़ा बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। 30 घंटे की लंबी प्रसव पीड़ा के बाद आधी रात को मुमताज को बेटी पैदा हुई, जिसका नाम गौहर आरा रखा गया था। इस बच्ची को जन्म देने के बाद मुमताज की पीड़ा बहुत ज्यादा बढ़ गई थी ओर रक्त स्त्राव भी रुक नहीं रहा था। जिसके कारण मुमताज ने 17 जून 1631 की सुबह तड़पते हुए अपने प्राण त्याग दिए थे। इतिहासकारों का कहना है कि मुमताज ने शाहजहां से दो वायदे मरने से पहले लिए थे, जिनमें से एक दूसरी शादी ना करने का था ओर दूसरा उसके लिए एक सुंदर मकबरा बनवाने का था।

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