भारत जहां एक तरफ दिन प्रतिदिन तरक्की कर रहा है, समाजिक व आर्थिक रूप से खुद को शक्तिशाली बना रहा है वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया के एक प्रमुख अखबार में एक कार्टून के माध्यम से भारतीयों को भूखा और सोलर पैनल खाते हुए दिखा गया है। यह कार्टून पेरिस जलवायु सम्मेलन की प्रतिक्रिया में ‘द आस्ट्रेलियन’ में छपा है। यह अखबार मीडिया मुगल माने जाने वाले रूपर्ट मर्डोक का है। कार्टून से यह जाहिर होता है कि एक दुर्बल भारतीय परिवार सोलर पैनल तोड़ रहा है और एक व्यक्ति इसे आम की चटनी के साथ खाने की कोशिश कर रहा है। इस कार्टून को देखकर यही प्रतीत होता है कि विकसित देशों के समक्ष भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारत को लेकर बेबाकी से अपनी बात रखना किसी भी देश को रास नहीं आ रहा।
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ट्विटर पर इस कार्टून की व्यापक रूप से निंदा हो रही है। कई लोगों ने भारत के तेजी से विकसित होते सशक्त ऊर्जा क्षेत्र की ओर ध्यान देने की बात की है, तो कई लोगों ने इस कार्टून की निंदा करते हुए इसे नस्लवादी बताया है।
इसके साथ डीकीन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक यीन पारडीज ने भी अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा है कि ‘कार्टून का संदेश नस्लवादी है। उनके मुताबिक, कार्टून का संदेश यह है कि भारत अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करने में विवेकहीन है।’ इतना ही नहीं इस कार्टून को लेकर मैकरी विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र की प्राध्यापिका अमंद वाइज ने गार्डियन ऑस्ट्रेलिया से कहा है कि ‘मेरे विचार से यह कार्टून स्तब्ध करने वाला है। यह ब्रिटेन, अमेरिका या कनाडा में अस्वीकार्य होगा।’ इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा है कि ‘भारत आज विश्व का प्रौद्योगिकी केंद्र है। धरती पर कुछ सर्वाधिक हाईटेक उद्योग दुनिया के इस हिस्से में हैं। इस कार्टून का यह संदेश है कि विकासशील देशों में लोगों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इस प्रकार के प्रौद्योगिकियों की जरूरत नहीं है, उन्हें भोजन की जरूरत है।’