जब कोई बच्चा झूठ मूठ का रोना शुरू करता है तो ऐसे में घर वाले या परिवार वाले कहते हैं कि मगरमच्छ के आंसू ना बहाओ। इस कहावत का इस्तेमाल आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से किया जा रहा है, लेकिन यह कहावत बनी कैसे? क्यों ऐसा कहा जाता है? क्या आप जानना चाहते हैं कि मगरमच्छों का झूठी हमदर्दी से आखिर क्या संबंध है।
आपको बता दें कि यह कहावत 14वीं शताब्दी से चली और बोली जा रही है। एक संस्मरण ‘द वोयेज एंड ट्रेवेल ऑफ सर जॉन मैंडीविली’ (The Voyage and Travel of Sir John Mandeville) में यह लिखा गया था कि जब कोई जानवर कोई इंसानी मांस या शिकार को खा जाता है तो उसके बाद पछतावे के रूप में झूठ मूठ के आंसू निकालने लगता है कि इंसानी मांस को खाकर उसे पछतावा हो रहा है। तभी से यह कहावत चलती आ रही है।
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यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के एक जीव विज्ञानी ने यह सिद्ध किया कि सचमुच कुछ जानवर मांस खाने के बाद रोते हुए देखे गए हैं। 7 में से 5 मगरमच्छ को शिकार निगलने के बाद रोते हुए देखा है। एक अध्ययन के मुताबिक जब इन जानवरों के जबड़े खाना खाते हुए एक दूसरे से टकराते हैं तो एक शारीरिक प्रक्रिया होती है,जिस कारण आंखों से आंसू निकलने लगते हैं। डॉक्टर ने इस प्रक्रिया को मगरमच्छ के आंसू “Crocodile Tears” कहते हैं। बता दें कि इस कहावत का इस्तेमाल शेक्सपियर भी अपनी कहानियों में किया करते थे।