महज चार वर्ष की उम्र में बिना रुके 65 किलोमीटर की दौड़ लगाकर दुनिया का सबसे कम उम्र का मैराथन धावक बनने वाला बुधिया आज अव्यवस्था की गुमनामी में कहीं खो गया है। साल 2006 में एक चार वर्षीय बच्चे के 65 किलोमीटर की रेस मात्र 7 घंटे 2 मिनट में पूरा करने की खबर देश और दुनिया में जिसने भी सुनी वो हैरान हुए बिना नहीं रह सका। इस बच्चे के साहसिक कारनामे को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया। उसके ये कारनामे अखबारों से लेकर टीवी चैनलों तक की सुर्खियां बने। अपनी प्रतिभा के बल बूते वंडर किड बुधिया ने लोगों को इतना प्रभावित किया कि उस पर बनी फिल्म “दूरंतो” को 63वें राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म के खिताब से नवाज़ा गया।
Image Source :http://media2.intoday.in/
लेकिन अफसोस कि इस समय लाचार और असहाय गरीब बुधिया गुमनामी के गहरे अंधकार में कहीं खो गया है। हलांकि आज भी उसके दिल में ओलंपिक विजेता बनने की ख्वाहिश है पर व्यवस्था की अड़चनें उसके राह में रोड़े अटका रही हैं।
वंडर वॉय बुधिया के जीवन की असल कहानी भी किसी वंडर स्टोरी से कम नहीं है, जो सबको हैरान करने वाली है। साल 2002 में गरीब परिवार में जन्मे बुधिया को उसकी गरीब मां ने अपने कलेजे पर पत्थर रख कर महज 800 रुपए में बेच दिया था। जिसे बाद में जूडो-कराटे के कोच बिरंची दास ने गोद ले लिया। कोच बिरंची दास ने उसके हुनर को चमकाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। बुधिया के मैराथन जीतते ही बिरंची दास को लेकर देश भर में काफी शोर-शराबा हुआ और कई जगह उन्हें घोर विरोध का सामना भी करना पड़ा। अंत में ओडिशा सरकार के बाल कल्याण विभाग ने बुधिया के अभ्यास पर प्रतिबंध लगा कर उसे भुवनेश्वर के खेल छात्रावासा में भेज दिया। उधर खबर ये भी आई कि बुधिया के कोच बिरंची दास की हत्या कर दी गई। बुधिया के प्रतिबंध पर बाल कल्याण विभाग ने अपनी सफाई दी कि अभी बुधिया की उम्र मैराथन के लायक नहीं है। बहरहाल जो भी हो बुधिया का और गुरु बिरंची दास का ओलंपिक विजेता बनने और बनाने का सपना अधूरा रह गया है।
बुधिया को निजी कोच की आवश्यकता-
Image Source :http://www.hindustantimes.com/
चंद्रशेखरपुर के डीएवी विद्यालय में आठवीं कक्षा में पढ़ रहे बुधिया का कहना है कि ‘मुझे अपने सपने को पूरा करने के लिए एक निजी कोच की जरूरत है। मुझे मैराथन के लिए प्रशिक्षण मिल रहा था, लेकिन मुझे 100-200 मीटर की दौड़ के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।’
बुधिया की मां सुकांती सिंह की भी खेल प्रशासन से कुछ शिकायतें हैं। सुकांती का कहना है कि ‘मेरे बेटे के लिए खेल छात्रावास में पोषक भोजन नहीं है। वह मुझसे बार-बार शिकायत करता है कि उसे छात्रावास में नहीं रहना। अगर कोई मेरे बेटे को प्रशिक्षण दे, तो मैं इसे छात्रावास छोड़ने के लिए कहूंगी।’
वहीं अगर खेल प्रशासन की बात सुनें तो अधिकारियों ने इन सभी आलोचनाओं को गलत बताया है। खेल निदेशक ए.के. जेना का कहना है कि ‘हम छात्रावास में रहने वाले सभी बच्चों को पर्याप्त सुविधाएं दे रहे हैं, तो कोचिंग मुहैया कराने की कोई समस्या नहीं है। बुधिया अब भी मैराथन के लिए तय की गई उम्र की अवधि तक नहीं पहुंचा है। उसे जिला और राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना होगा, जिसके लिए उसे अभ्यास जारी रखना होगा। उसे अब भी कड़ी मेहनत करने की जरूरत है।’