आने वाली 15 अगस्त 2017 को हम लोग देश की आजादी की 70वीं वर्षगांठ मना रहें हैं। भारत को आजादी दिलाने के लिए बहुत से लोगों ने अपने परिवार को छोड़ दिया और देश में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति में हिस्सा लिया। ये लोग अंग्रेजों के लिए एक अपराधी थे, पर इन लोगों की वजह से ही देश आजाद हुआ। भारत को गुलामी से आजाद कराने वाले अनेक क्रांतिकारियों को आप जानते ही होंगे, पर आज हम आपको देश के एक ऐसे क्रांतिकारी के बारे में जानकारी दे रहें हैं, जिसको भारत का पहला क्रांतिकारी कहा जाता था। आइए जानते हैं इस महान क्रांतिकारी के बारे में।
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आपको सबसे पहले हम बता दें कि भारत की आजादी के लिए जिसने सबसे पहले कदम उठाया, उस क्रांतिकारी का नाम “वासुदेव बलवंत फड़के” था। वासुदेव बलवंत फड़के महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के शिरढोणे गांव में 4 नवंबर 1845 को पैदा हुए थे। वासुदेव बलवंत फड़के सशस्त्र विद्रोह वाला संघठन बनाकर अंग्रेज सरकार से बगावत करने वाले देश के पहले क्रांतिकारी थे, इसलिए ही उनको आजादी का पहना क्रांतिकारी कहा जाता है।
सामान्य पढ़ाई के बाद इनके पिता जी की इच्छा थी कि वे दुकान चलाएं, पर वे घर से मुंबई चले आए और यहां के एक जंगल के मैदान में वह लोगों को युद्ध करने की कला सिखाने लगे थे। इस कार्य में उनके साथ में लोकमान्य तिलक और ज्योतिबा फुले भी शामिल थे। 1871 में वासुदेव अंग्रेज सरकार में कार्य करते थे। उस समय सूचना मिली कि उनकी मां का स्वास्थ्य सही नहीं है। वासुदेव ने छुट्टी मांगीं पर उनको छुट्टी नहीं मिली।
वे बिना छुट्टी के ही अपने घर चले गए, पर उस समय तक मां मृत्यु की गोद में जा चुकी थी। इसी वजह ने वासुदेव ने मन में अंग्रेजो के खिलाफ बगावत को जन्म दिया और उन्होंने नौकरी छोड़कर आदिवासी लोगों को अपने साथ मिलाकर एक संघठन का निर्माण किया। इस संघठन ने अंग्रजों से बगावत का बिगुल बजा दिया। 1879 में वासुदेव ने अपने संघठन को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए अंग्रेजों के ठिकानों पर डाके डालने शुरू किये।
अब तक वासुदेव का प्रभाव महाराष्ट्र के 7 जिलों में फैल गया था और अंग्रेज अफसर वासुदेव के नाम से ही डरने लगे थे, इसलिए ब्रिटिश सरकार ने उनको जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 50 हजार रूपए के इनाम की घोषणा कर दी। 20 जुलाई 1879 में वासुदेव बीमारी की अवस्था में एक मंदिर में थे। उस समय ही उनको गिरफ्तार कर लिया गया और काला पानी की सजा देकर अंडमान को भेज दिया। 17 फरवरी 1883 के दिन अंडमान जेल में अपनी सजा को पूरी करते हुए ही, यह वीर सपूत वासुदेव बलवंत फड़के हमेशा के लिए अमर शहीद बन गए।