प्रेम की मिसाल वैसे तो ताजमहल से दी जाती है, पर आज हम आपको जिस मामले के बारे में यहां बता रहें हैं। उसको जानकर आपका नजरिया ताजमहल से एकदम हट जायेगा। ताजमहल को प्रेम की निशानी के तौर पर दर्शाया जाता है। यह ईमारत शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की यादगार में बनवाई थी। वर्तमान समय में एक मस्जिद भी ताजमहल की तरह ही काफी फेमस होती जा रही है। असल में इस मस्जिद का निर्माण एक व्यक्ति ने अपनी मृतक पत्नी की याद में कराया है। आज हम आपको फातिमा मस्जिद के बारे में जानकारी दे रहें हैं।
सिर्फ महिलाओं के लिए है यह मस्जिद –
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आपको सबसे पहले बता दें कि इस मस्जिद का नाम “फातिमा मस्जिद” है। यह मस्जिद झारखण्ड राज्य के जमशेदपुर के कपाली क्षेत्र में स्थित है। इस मंस्जिद का निर्माण “नूर मुहम्मद” ने कराया है, जो एक रिटायर्ड टीचर हैं। इस मस्जिद की अपनी कई खासियतें हैं। फातिमा मस्जिद की एक खासियत यह है कि इस मस्जिद में सिर्फ महिलायें ही प्रवेश कर सकती हैं। यह मस्जिद महिलाओं के लिए ही बनाई गई है। इस मस्जिद में पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। इस मस्जिद की एक खासियत यह भी है कि यहां आकर महिलायें न सिर्फ नमाज पढ़ती हैं बल्कि दीनी तथा दुनयावी तालीम भी हासिल करती हैं। आपको बता दें कि मस्जिद में दीनी तालीम के अलावा मुस्लिम महिलायें कढ़ाई, सिलाई जैसे कुछ ऐसे कार्य भी सीखती हैं जिनसे वे आत्मनिर्भर बन सकें। इसके अलावा मस्जिद की एक खासियत यह भी है कि यहां पर नमाज पढ़ाने के लिए कोई ईमाम नहीं है। यहां महिलायें स्वयं समय पर आकर खुद नमाज अदा करती हैं। इस प्रकार से फातिमा मस्जिद महिलाओं के लिए बनी एक अलग मस्जिद है।
दीन के साथ मिलती है दुनयावी शिक्षा भी –
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इस मस्जिद का निर्माण कराने वाले नूर मुहम्मद कहते हैं कि “मेरी पत्नी का नाम फातिमा ही था। उसका मानना था कि महिलाओं की नमाज के लिए भी एक अलग स्थान होना चाहिए। जहां न सिर्फ दीनी शिक्षा मिले बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी शिक्षा दी जाए।” नूर मुहम्मद बताते है कि पत्नी की आखरी इच्छा को पूरी करने के लिए उन्होंने इस मस्जिद का निर्माण कराया है। मस्जिद का निर्माण न कराने के लिए कई मुस्लिम संघटनों ने आवाज बुलंद की थी पर नूर मुहम्मद डटे रहें। बाद में सब उनके समर्थन में आ गए। इस प्रकार 2017 में नूर मुहम्मद ने फातिमा मस्जिद की नींव रखी थी जो आज महिलाओं की आत्मनिर्भरता का मजबूत सहारा बन चुकी है।