अनोखा मंदिर – इस मंदिर मे चढ़ाई जाती थी अंग्रजों की बलि

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अपने देश मे लगभग हर स्थान पर मंदिर बने हैं ओर अपने भी बहुत से मंदिरों को देखा ही होगा ओर कई ऐसे मंदिरों के बारे मे सुना भी होगा जहां पर अाज भी बलि दी जाती है पर क्या अाप किसी ऐसे मंदिर कर बारे मे जानकारी रखते हैं जहां पर अंग्रजों की बलि दी जाती थी, अाज हम अापको एक ऐसे ही मंदिर के बारे मे जानकारी देने जा रहे हैं जिसमें बलि के रूप मे अंग्रजो को मार कर चढ़ाया जाता है। अाइए जानते हैं इस मंदिर के बारे मे।

यह घटना है 1857 के पहले स्वतन्त्रता संग्राम से भी पहले के समय की , यह मंदिर अाज भी झारखंड मे स्थित है ओर अाज भी यहाँ पर अाने वाले लोगो की भीड़ लगी रहती है परंतु झारखंड का यह इलाका उस समय जंगल के बीच मे अाता था ओर मंदिर भी चारो ओर से जंगल से ही घिरा हुअा था। उस समय यहाँ से गुर्रा नामक नदी गुजरती थी ओर डुमरी रियासत के बाबू बंधु सिंह उस समय इस जंगल मे रहते थे। पास मे ही ताड़ के एक पेड के नीचे बे अपनी कुलदेवी तरकुलहा की उपासना करते थे। उस समय भी अंग्रेज भारत के लोगो पर कई प्रकार के जुल्म करते थे, जब बंधु सिंह बड़े ह्यू तो अंग्रेजों के प्रति उनका नजरिया बिल्कुल बदल गया, वे अंग्रजो से किसी भी कीमत पर भारतीयों के जुल्म का बदला लेना चाहते थे। बंधु सिंह एक अच्छे लड़ाका थे ओर गुरिल्ला लड़ाई मे वे माहिर थे इसलिए उस समय जब कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता था तो बे उसको मारकर उसका सर काट कर अपनी कुलदेवी के मंदिर मे भेट चढ़ा देते थे।

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अंग्रेजो के बहुत से लोग जो उस जंगल मे गए वह वापस नही अा सके तो अंग्रेजो ने इस लापता होने की घटना की जानकारी निकलवाई ओर अंग्रजो को पता लग गया की यह सब बंधु सिंह ने किया है। इसके बाद मे अंग्रजों ने बंधु सिंह को ढूंढने के लिए सारा जंगल छान मारा पर बंधु सिंह हाथ नही अाये, अंत मे एक व्यवसायी की मुखबिरी के कारण बंधु सिंह को अंग्रजो ने गिरफ्तार कर लिया ओर अदालत ने उनको फांसी की सजा सुनाई तब 12 अगस्त 1857 को बंधु सिंह को गोरखपुर के अली चौराहे पर सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटका दिया, कहा जाता है की 6 बार फांसी देने पर भी अंग्रेज असफल रहें क्यूकी बार बार फांसी के फंदे की रस्सी टूट जाती थी फिर अंत मे बंधु सिंह ने अपनी कुलदेवी से प्रार्थना कर अपने को उनके पास बापस अाने देने की प्रार्थना की तब सातवी बार बंधु सिंह को फांसी लगी। बंधु सिंह के सम्मान मे उनके पूर्वजों ने उनकी कुल देवी का एक मंदिर ओर बंधु सिंह का स्मारक बनवाया हुअा है।

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shrikant vishnoi
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किसी भी लेखक का संसार उसके विचार होते है, जिन्हे वो कागज़ पर कलम के माध्यम से प्रगट करता है। मुझे पढ़ना ही मुझे जानना है। श्री= [प्रेम,शांति, ऐश्वर्यता]

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