17 अनाथ बेटियों ने कांधा देकर पूरी की अपने बाबूजी की अंतिम इच्छा

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कहा जाता है कि इंसान अपने नाम से नहीं बल्कि कर्मों से महान बनता है। ऐसे लोग दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करने के लिए अपना सब कुछ त्याग देते हैं। ऐसे इंसान को लोग देवता के स्वरूप पूजते हैं। कुछ ऐसे ही महानपुरुष रहे समाजसेवी भगवान सिंह परिहार ‘बाऊजी’। उन्होंने असहाय बच्चों को सहारा देकर उनकी तकदीर ही बदल डाली। समाजसेवी भगवान सिंह परिहार ‘बाऊजी’ का देहांत होने पर लोगों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, क्योंकि अब वे सभी बच्चे अनाथ हो गए जिन्हें गांव के पिता कहे जाने वाले ‘बाऊजी’ ने आसरा दिया था।

RAJ JOD HMU girls gave shoulders in last death journey4Image Source: http://i9.dainikbhaskar.com/

राजस्थान के जोधपुर में मंगलवार को समाजसेवी भगवानसिंह परिहार की अंतिम यात्रा रवाना हुई तो लोगों ने रास्ते में फूल बिखेर कर उन्हें विदाई दी। उनकी अर्थी को रोते-रोते 17 अनाथ बेटियों ने कांधा दिया। इनमें से 12 को उन्होंने खुद पाला पोसा और शादी कराई। 5 लड़कियां अभी भी उनके अनाथ आश्रम में ही रह रहीं हैं। उन्होंने जीवन भर अनाथ बच्चों को आश्रय देने का काम किया, खासकर बेटियों को। बाऊजी की इच्छा थी कि उनकी अंतिम यात्रा में उनकी ये बेटियां उनके साथ हों।

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‘बाऊजी’ की इच्छा के मुताबिक दी गई अंतिम विदाई-
समाजसेवी भगवानसिंह परिहार ‘बाऊजी’ ने हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में सोचते हुए हर कार्यों को पूरा किया था। उनका कहना था कि जो लोग अपनी खुशियों को मनाने के लिए जितना ताम झाम करते है। उस खर्च को बचाया जाए तो कितने गरीब लोगों का पेट भरा जा सकता है। उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की गई जो इस शुरूआत की एक नई पहल थी। भगवानसिंह परिहार के बेटे राजेंद्र, सुरेंद्र व चेतन परिहार ने बताया कि बाऊजी समाज में योगदान देने के साथ ही कुरीतियों को छोड़ने की बात भी करते थे। उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। जिन रास्तों से उनकी अर्थी गुजरी वहां महिलाओं ने फूल बिछा दिए। बाबूजी की शवयात्रा के समय गांव की महिलाओं ने घर से निकलकर उनके अंतिम दर्शन किए और रास्ते भर फूल बरसाती रहीं।

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भगवानसिंह परिहार के बेटों ने बताया कि बाबूजी ने मरने से पहले सभी नियमों को तोड़ने के लिए बताया था। कहा था कि घर में मौत पर सगे-संबंधियों के घर से खाना आता है। ये परंपरा बंद होनी चाहिए। जिस महिला के पति का देहांत होता है, उठावने के दिन उसके पीहर वाले आते हैं। उसे सफेद ओढ़ना ओढ़ाते हैं और उसकी चूड़ियां उतारते हैं। बाऊजी ने इस परंपरा के लिए भी मना कर दिया था। समाज में गंगा प्रसादी के नाम पैसा खर्चकर बड़ा आयोजन होता है। यह गलत परंपरा है। अब उनके बेटे गंगाप्रसादी का आयोजन नहीं करेंगे।

भगवानसिंह परिहार (1929-2015) द्वारा किए गए नेक काम-

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748 अनाथ बच्चों को पाला।
65 अनाथ, अबोध व निशक्त बच्चे अभी भी उनके संस्थान में पल-बढ़ रहे हैं।
12 बेटियों को पढ़ाकर विवाह तक करवाया।
87 बेटियों को पढ़ाकर व पाल-पोसकर फिर उनके परिजनों को सौंपा।
बुजुर्गों के लिए-
153 निर्वासित बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में स्थान दिया।
78 वृद्धजन व उनके परिजनों को समझाकर वापस उनके घर में स्थान-सम्मान दिलाया।
बेसहारा लोगों के लिए-
5000 लोगों को क्षमतावान बनाया।
25 हजार नेत्र ऑपरेशन में सहयोग दिया। पोलियो-नशामुक्ति अभियान में सहायता की।

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