किसी जघन्य अपराध के लिए लोगों को फांसी की सजा सुनाई जाती है। फांसी की सजा हमारे देश में कई वर्षों से चली आ रही है। इस सजा में अपराध करने वाले को फांसी पर लटका दिया जाता है। आपको बता दें कि एक व्यक्ति ऐसा था जिसे फांसी पर चढ़ाने के लिए एक या दो बार नहीं बल्कि छह बार फांसी पर चढ़ाया गया लेकिन हर बार उसकी रस्सी एकाएक टूट जाती। जिसने भी इस घटना को देखा वो हैरान रह गया कि आखिर इतनी मजबूत रस्सी पलभर में ही कैसे टूट जा रहीं हैं। इस शख्स के आगे मौत भी आने से घबरा रही थी। अंतिम में इस व्यक्ति ने खुद ही अपनी देवी माता से प्रार्थना कि की मुझे जाने की इजाजत दें तब ही उसे फांसी पर चढ़ाया जा सका।
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क्या है पूरा मामला
यह घटना अंग्रेजों के जमाने की है। जब हमारे देश की हुकूमत में अंग्रेजों का अधिकार था। देश के उत्तर प्रदेश में गोरखपुर में ही देवीपुर गांव है। यह जगह पहले जंगल हुआ करती है। यहां पर डुमरी रियासत के क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह रहते थे। इसी जंगल में उन्होंने अपनी इष्ट देवी तरकुलहा देवी को स्थापित किया हुआ था। वह यहां पर रोज पूजा करता था। बचपन से ही अंग्रेजों के जुल्मों की कहानी को सुनकर बढ़ा हुए बाबू बंधू सिंह को अंग्रेजीं हुकूमत के खिलाफ नफरत हो गई। वह गोरिल्ला लड़ाई में माहिर थे। इस दौरान अंग्रेजों का जो भी सैनिक जंगल में प्रवेश करता एकाएक गायब हो जाता। दरअसल बाबू बंधू सिंह अंग्रेजों के सिपाहियों को मार कर उनके शीश को देवी को चढ़ा देते थे। अंग्रेज भी इस रहस्य को समझ नहीं पाए लेकिन एक व्यक्ति की मुखबरी पर एक दिन क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह को पकड़ लिया गया। इसके बाद अंग्रेजों ने फरमा जारी किया कि बाबू बंधू सिंह को गोरखपुर के अली नगर के चैराहें पर सभी के सामने फांसी दी जाएगी। जानकारी के अनुसार जब उन्हें फांसी पर चढ़ाया गया, तब माता की कृपा से करीब छह बार फांसी की रस्सी अपने आप टूट गई। छह बार रस्सी के टूट जाने से सब अंग्रेज परेशान हो गए लेकिन अंत में वीर क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह ने स्वंय अपनी इष्ट देवी से प्रार्थना कर माता मुझे जानें दें कि इजाजत मांगी। तब सातवीं बार उन्हें फांसी पर चढ़ाया गया। आज उनके सम्मान में स्मारक भी बनाया गया है। साथ ही यह देवी का स्थान आज ‘‘तरकुलहा देवी मंदिर तीर्थ स्थल बन चुका है।