भारत की इस धरा में ऐसी कई अनमोल प्रतिभाएं छिपी हुई है, जिसे खंगाल पाना बड़ा मुश्किल है और इन्हीं प्रतिभाओं के चलते हमारे देश में रहने वाले लोग हमेशा से ही कई आश्चार्यचकित कारनामे करते चले आ रहे हैं। इनके जज्बे में छिपी प्रतिभा के बारे में भारत भले ही ना जानता हो, पर दूसरे देश के लोग हमेशा से ही नतस्तक हो सलाम करते आये है।
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ऐसा ही अद्भुत कारनामा दिखा कर अमेरिका के लिए चुनौती बने उद्धव भराली ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि मजबूत इरादों और सपनों के आगे हर प्रकार की परस्थितियां छोटी पड़ जाती है। इन्होंने ऐसा काम किया है जो अमेरिका भी 30 वर्षों के गहन अध्ययन के बाद भी ना कर सका।
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असम की भूमि पर जन्म लेने वाले मैकेनिकल इंजीनियर उद्धव भराली भले ही गरीब परिस्थितियों के चलते इंजीनियरिंग तक ना पढ़े हो पर आज अमेरिका के कॉलेजों में महंगी से महंगी पढ़ाई करने वाले इंजीनियर भी उनके सामने छोटे नजर आते है। उनकी इसी काबिलियत को देख उद्धव भराली को नासा ने एक सफल नवीनतम आविष्कारक के रूप में पहचान दी है।
सन् 2006 में उद्धव भराली ने एक ऐसी मशीन का अविष्कार किया जिसमें अनार के दानों को असानी के साथ बाहर निकाला जा सकता है। अनार के दाने निकालने वाली यह अनोखी मशीन ने भारत ही नहीं पुरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। जिसको देख अब कई विकसित देशों के ऑफर उद्धव भराली को मिलने लगे है। अमेरिका,जापान चीन जैसे विकसित देश उन्हें अपने देश की नागरिकता देने को भी तैयार खड़े थे। पर अपनी मातृभूमि को आगे बढ़ाने के जज्बे ने उन देशों के सपनों पर पानी फेर दिया और वह अपने देश का उत्थान करने के लिए आगें बढ़े। इन्होंने 118 अविष्कार किए हैं, जिसके सामने अमेरिका की ताकत भी फेल हो चुकी है।
बचपन से ही गणित के विषय में होनहार रहने वाले छात्र उद्धव के प्रश्नों को सुनकर उनके शिक्षक भी परेशान हो जाते थे। पर गरीबी की मार के चलते अपने परिवार को सभांलने का जिम्मा उठाते हुये उन्होंने खेल खेल में ही ऐसे की चमत्कार कर दिखाए जिसके लिए अमेरिका 30 वर्षो से लगातार गहन अध्ययन कर रहा था। उन्होंने एक ही खोज नहीं की बल्कि कई अलग-अलग चमत्कार कर दिखाए है।
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भराली के नवीन आविष्कार की शुरुआत सन् 1987 से शुरू हुई, जब बैंक के द्वारा उनके परिवार को घर से निकल जाने का नोटिस मिला और उसी दौरान उन्हें किसी कंपनी के लिए पोलीथिन मेकिंग मशीन के विषय की जानकारी मिली। जिसको बनाने पर आने वाली लागत 5 लाख रुपये तक आंकी गई थी, फिर क्या था अपने दिमाग के साथ कठिन परिश्रम करते हुए उन्होंने काफी कम दिनों में ही ठीक वैसी ही एक मशीन सिर्फ 67,000 रुपये की लागत में बनाकर सभी देशों को चुनौती दे डाली फिर क्या था ये कारवां आगे बढ़ता गया। बस यहीं से शुरू हुआ सफर भराली नए-नए आविष्कार करते रहे।
2006 मे उनके द्वारा किए गये आविष्कार में अनार के बीज निकालने वाले दुनिया के इस अनोखे यन्त्र को देख उनके नाम पर 39 पेटेन्ट निकाले गये। जिसमें सुपारी व अदरक के छिल्के निकालने वाला यंत्र, चाय के पत्तो को निकालने वाला यंत्र भी शामिल है।
मिलने वाले पुरूस्कार
- राष्ट्रीय अन्वेषण संस्था का सृष्टि सन्मान (2007)
- अन्वेषण के लिए प्रेसिडेंट ग्रासरूट इनोवेशन पुरस्कार (2009)
- विज्ञान प्रयुक्ति विद्या मन्त्रालय से मेरिटोरियस इनोवेशन पुरस्कार (2011)
- राष्ट्रीय एकता सम्मान (2013)
- नासा के क्रियेट द फ्यूचर डिजाइन प्रतियोगिता मे उन्हें द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ.