आज से 32 साल पहले हुआ एक भीषण हादसा इतिहस के पन्नों में खूनी स्याही से ऐसे जख्म लिख गया जिसे भुलाया जाना असान नहीं है। 5 जून 1984 की देर रात की उस घटनी की टीस आज भी महसूस की जा सकती है जब देश में पहली बार आस्था से जुड़ा बड़ा मंदिर आतंकवादियों के निशाने पर आ चुका था। हथियारों से लैस अपने साथियों के साथ छिपे बैठे भिंडरावाले और उसकी छोटी-सी टुकड़ी को काबू करने के लिए सेना को भेजा गया था। जिसकी ताकत से मंदिर तो आतंकियों से आजाद हो गया, लेकिन साथ ही दे गया कई गहरे जख्म। इस जंग के दौरान काफी ख़ून-ख़राबा हुआ और अकाल तख़्त पूरी तरह से खत्म हो गया। स्वर्ण मंदिर पर हो रही लगातार गोली बारी के कारण कई दिनों तक पाठ नहीं किया गया। काफी जान माल की हानि का सामना करना पड़ा।
Image Source:
जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि इसमें 83 से ज्यादा जवान मारे गए थे, जिसमें से 249 से ज्यादा घायल हुए थे। इसके अलावा 493 से ज्यादा वहां के आम नागरिक मारे गए। 86 घायल हुए और 1592 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था।
स्वर्ण मंदिर सिक्खों का सबसे पवित्र धार्मिक तीर्थ स्थल माना जाता है। वह उस समय चरमपंथियों के कब्ज़े में था और इन्हीं लोगों से इस मंदिर को मुक्त कराने के उद्देश्य से भारतीय सेना ने सैन्य कार्रवाई कर इस मंदिर को मुक्त कराया था। इस ऑपरेशन ब्लूस्टार को अंतिम अंजाम देने का आदेश तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा दिया गया था, जिससे सिक्खों में काफी नराजगी थी। जिसके चलते चरमपंथियों ने तत्कालीन सेनाध्यक्ष एएस वैद्या की रिटायरमेंट के बाद हत्या कर दी थी और इसी गुस्से से नाराज दो सिख अंगरक्षकों ने 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी, पर यह जंग यहीं खत्म नहीं हुई थी। करीब 10 वर्ष बाद तक पंजाब हिंसा का दौर चलता रहा।
अचानक हुये सेना के हमले से नाराज सिख संगठनों का कहना है कि जिस समय सैन्य टुकड़ी ने गोली बारी करना शुरू किया था उस समय हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु स्वर्ण मंदिर परिसर में मौजूद थे और इसी हमले में कई निर्दोष लोग हजारों की संख्या में मारे गये थे। जिसका भारत सरकार हमेशा से खंडन करती आई।