अपने देश के हिमाचल प्रदेश को देव भूमी कहा जाता है, इसका कारण है यहां पर बहुत ज्यादा मंदिरों का होना और यहां का आध्यात्म। इस देवभूमि पर ही आस्था से जुडी कई झीले भी स्थित हैं, ये झीले कुछ इस प्रकार की हैं हैं की यदि कोई इनको देखने के लिए जाता है तो वह चकित हुए विना नहीं रहता है। इस प्रकार की ही एक झील का नाम है पराशर झील, यह झील मंडी जिले से 49 किमी की दूरी पर स्थित है। यह झील समुद्र तल से 2730 मी की ऊचाई पर है। यह झील प्रत्येक व्यक्ति को अपनी और आकर्षित करती है। इस झील का संबंध पराशर ऋषि से माना जाता है इसलिए इसको पराशर झील कहा जाता है। इस झील के बीच में एक टापू है, जो की अपना स्थान बदलता रहता है यानि वह टापू इस झील में तैरता रहता है इसलिए बहुत से लोग इस झील को तैरते हुए टापू की झील भी कहते हैं। यह तैरता हुआ टापू सबसे के लिए आज रोचकता का केंद्र बना हुआ है और इस झील की गहराई भी सबके लिए आज तक रहस्य बनी हुई है।
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इस झील के साथ में ही पैगोडा शैली में ऋषि पराशर का मंदिर भी बना हुआ है।
झील के बीच में तैरता घास का टापू समय समय पर अपना स्थान बदलता।
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नबंबर के बाद में यहां वर्फबारी शुरू हो जाती है, उस समय इस झील का आकर्षण बहुत बढ़ जाता है पर उस समय यहां पर पैदल ही रास्तो को पार कर पंहुचा जा सकता है।
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वर्फबारी के बाद में कभी कभी धूप निकलती है तो यह झील काफी आकर्षक हो जाती है।
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पर्यटकों के ठहरने के लिए इस जगह पर लोक निर्माण बिभाग द्वारा एक गेस्ट हाउस भी बनाया गया है ताकि आने वाले पर्यटकों को असुबिधा न हो।