रेस्टोरेंट में आपने कई बार खाना खाया होगा और बिल दिया होगा, पर आज हम आपको यहां जिस रेस्टोरेंट के बारे में बता रहें हैं वहां आपको बिल देना ही नहीं होता है। जी हां, यही इस रेस्टोरेंट की खासियत है कि यहां पर आपको कोई बिल नहीं देना होता है। आपको हम बता दें कि इस रेस्टोरेंट का नाम “कर्म कैफे” है और यह गुजरात में स्थित है। कर्म कैफे नामक यह अनोखा रेस्टोरेंट गुजरात के “नवजीवन प्रेस प्रकाशन” ने एक वर्ष पहले अपने ही कैम्पस में खोला था। हम आपको यहां ये भी बता दें कि नवजीवन प्रकाशन “महात्मा गांधी” से संबंधित पुस्तकों का प्रकाशन करता है।
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इस अनोखे रेस्टोरेंट को खोलने के पीछे के कारण को बताते हुए नवजीवन प्रेस के प्रबंध निदेशक विवेक देसाई बताते हैं कि “समय बदल रहा है और इसलिए गांधी के मूल्यों में विश्वास को भी समय के साथ में परिवर्तन कर ही लेना चाहिए। इसी सोच के साथ हमने यह रेस्टोरेंट शुरू किया। एक बात यह भी थी कि नवजीवन प्रेस में आने वाले लोगों के लिए पानी की सुविधा के अलावा अन्य कोई सुविधा नहीं थी, इसलिए ही हम लोगों ने रेस्टोरेंट खोलने का विचार किया और यह तय किया की यहां जो कोई भी आएगा उससे कोई बिल नहीं लिया जाएगा।”
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इस प्रकार से यहां कोई बिल नहीं लिया जाता, चाहें आप जो भी खाएं या पिएं पर इस बात की व्यवस्था जरूर है कि आप खुद ही तय करें कि आपको खाने पीने के सामान का मूल्य आखिर क्या देना चाहिए। इसके लिए रेस्टोरेंट ने बाहर में एक डिब्बा लटकाया है जिसमें आप अपने हिसाब से खाने के बिल के पैसे डाल सकते हैं।
इतनी बड़ी सुविधा होने के बाद भी यह रेस्टोरेंट घाटे में नहीं है, बल्कि लाखों रूपए कमा रहा है। विवेक देसाई ने जानकारी देते हुए कहा कि साल भर पूरा होने के बाद में जब हम लोगों ने हिसाब लगाया, तो हमने पाया कि हमें साढ़े तीन लाख का फायदा हुआ है।” इस रेस्टोरेंट की सबसे खास बात है यहां का वातावरण, जो हराभरा तथा शांत है।
यही कारण है कि कई कॉरपोरेट कंपनियां यहां आकर अपनी कॉन्फ्रेंस करने लगी हैं। इस कैफे के अंदर में ही एक लाइब्रेरी भी है, जहां आप गांधी जी से संबंधित पुस्तकें पढ़ सकते हैं। इस प्रकार से देखा जाएं तो यह रेस्टोरेंट न तो कोई बिल लेता है और न ही यह घाटे में है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जिस कार्य पीछे जन सहायता की भावना होती है वह कभी घाटे में रहता ही नहीं।