देखा जाए तो आज के समय में विश्व के टॉप 100 में से भारत की कोई युनिवर्सिटी नहीं है पर हम यह बता रहें है कि विश्व के अन्य देशों में जब शिक्षा ने अपने पैर पसारने शुरू ही किये थे तब हमारा देश शिक्षा के शिखर पर था और हमारे देश में अन्य देशों के लोग शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। माना की अब अपने देश की शिक्षा व्यस्था और युनिवर्सिटीज पहले जैसी न रही पर आज भी इतिहास में हम लोग ही विश्व गुरु के नाम से जाने जाते हैं। जानकारी के लिए आपको यह भी बता दें कि 8 वीं शताब्दी से 12 वीं शताब्दी तक भारत शिक्षा के क्षेत्र में पूरे विश्व का सिरमौर हुआ करता था। आज के दौर में कुछ लोग सिर्फ दो प्राचीन विश्वविद्यालयों नालंदा और तक्षशिला को ही जानते है पर सच यह है कि इनके अलावा भी कई इस प्रकार के विश्वविद्यालय भारत में उस समय स्थित थे जो भारत को विश्व गुरु की पदवी दिलाने में सहायक हुए थे ,आइये जानते हैं उनके बारे में।
1- विक्रमशीला विश्वविद्यालय-
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इस विश्वविद्यालय का निर्माण महाराज धर्मपाल ने की थी, जो की पाल वंश से थे। 8वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के अंतिम दौर तक यह शिक्षाकेंद्र भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक था। यदि भारत के आधुनिक नक़्शे से इस विश्वविद्यालय की स्थिति का पता लगाते है तो यह बिहार के भागलपुर के आसपास स्थित था। इस विश्वविद्यालय को उस समय के प्रसिद्ध नालंदा का प्रतिस्पर्धी कहा जाता है।
2- पुष्पगिरी विश्वविद्यालय-
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यह विश्वविद्यालय अपने देश के उड़ीसा राज्य में था। इसका निर्माण तीसरी शताब्दी में हुआ था, इसको कलिंग राजाओ ने बनवाया था। 800 साल तक यह विश्वविद्यालय अपने शिखर पर स्थित था और लगातार शिक्षित बना रहा था। यह इतना विशाल था कि इसका विस्तार तीन पहाड़ श्रृंखलाओं उदयगिरी, ललित गिरी और रत्न गिरी तक फैला हुआ था। तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला के बाद में यह विश्वविद्यालय भारत का सबसे लोकप्रिय शिक्षा केंद्र था।
3- सोमपुरा विश्वविद्यालय-
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इस विश्वविद्यालय का निर्माण पाल वंश के राजाओं द्वारा ही हुआ था। उस समय यह सोमपुरा महाविहार नाम से जाना जाता था। उस समय यह विश्वविद्यालय 27 एकड़ में फैला हुआ था। यह विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म की शिक्षा देने के लिए सबसे प्रसिद्ध केंद्र था।