‘‘तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा? मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।’’ इस तरह अलग अलग भाषण शैली के लिये जानी जाने वाली सुषमा स्वराज आज हमारे बीच नही है।
पांच साल तक एक ट्वीट पर दुनियाभर में लोगों को मदद पहुंचाने वालीं पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कभी अपने पद पर घमंड नही किया बल्कि इस पद के जरिये ही वो बेसहारा लोगों की अवाज बनकर हमेशा उनके साथ खड़ी रही। उन्हें मुसीबतो से निकालकर एक मसीहा के रूप में अपनी खास पहचान बनाई है। आज हर देश के लोग उनके ना रहने पर दुखी है।
सुषमा स्वराज हमेशा ट्विटर के जरिये लोगो की मदद करने के लिये एक्टिव रहती थी लेकिन उनके जाने से पहले किये गये पोस्ट नें सभी को दुखी कर दिया। उनका आख़िरी ट्वीट था जिसमें उन्होंने लिखा।
“प्रधान मंत्री जी – आपका हार्दिक अभिनन्दन। मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने की प्रतीक्षा कर रही थी।”
इस ट्वीट का आना और उनका जाना बस एक संयोगमात्र बनकर रह गया। जम्मू-कश्मीर को लेकर बीजेपी सरकार ने एक फैसला लिया।और एक बिल लाकर लोकसभा, राज्यसभा में पास कराया। बीजेपी नें काफी पुरानी मांग को पूरा करके देश को फिर काश्मीर दे दिया। जो सुषमा स्वराज के होते हुए यह काम पूरा हुआ। जिसकी खुशी उन्होने जाहिर भी की, लेकिन उसके बाद ही वो इस दुनिया से अलविदा कहकर चली गई।
40 साल पहले सुषमा स्वराज को हरियाणा कैबिनेट से इस नेता के कहने पर हटाया गया था
सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफर काफी छोटी सी उम्र से ही शुरू हो गया था। महज 25 साल की उम्र में वह हरियाणा सरकार में सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनीं। 1977 से 1979 तक सामाजिक कल्याण, श्रम और रोजगार जैसे 8 मंत्रालयों का कार्यभार उन्होने संभाला। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती का सामना उन्हे जून 1977 में किया। जब चौधरी देवी लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे।जिसमें भारतीय जनता पार्टी पहली बार 90 में से 75 सीटों से जीती थी।जिस समय मंत्री पद के लिये काफी खाचीतानी चल रही थी उस समय तब मात्र 25 साल की उम्र में उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर बनने का मौका मिला था। लेकिन 17 नवंबर, 1977 की को सुषमा स्वराज से कैबिनेट मंत्री का पद अचानक से छीन भी लिया गया है हालांकि सरकार ने इस फेरबदल की कोई स्पष्ट वजह नहीं बताई थी। बस इतना ही बताया गया था कि सुषमा के पास जो हाउसिंग, जेल, आर्किटेक्चर, प्रिंटिंग और स्टेशनरी व कल्चरल अफेयर्स के पोर्टफोलियो थे, वो अब सीएम देवीलाल के पास रहेंगे।
बताया जाता है कि जिस वक्त देवीलाल देवी लाल हरियाणा के मुख्यमंत्री थे उस दौरान उनके बेटे ओम प्रकाश चौटाला की सरकार में बहुत चलती थी।जहां देवीलाल की हर बातों को आंख मूंद कर माना जाना वर्जित था। जो लोग नही सुनते थे या पसंद नही करते थे। उनका मंत्री पद पर बने रहना मुश्किल हो जाता था। सुषमा भी उनकी बैड लिस्ट में सबसे उपर थीं। सुषमा ने इस बीच सरकार की आलोचना कर उन्हें बोलने का मौका भी दे दिया। और ओमप्रकाश ने इसका फायदा उठाते हुए उन्हे कैबिनेट मंत्री पद हटा दिया। हालांकि बाद में उनको फिर मंत्री पद वापस मिल गया था।
इसके बाद समय की धारा में भी काफी बदलाव देखने को मिला। ओमप्रकाश चौटाला का जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप करना उस समय भारी पड़ गया जब 1979 में सरकार गिर गई। देवीलाल को भी इसका कारण पता चल गया और जब 1987 में देवीलाल की दोबारा सरकार आयी और सीएम बने तो ओमप्रकाश निकाल बाहर किया। यहां तक कि देवीलाल के ऑफिस तक में जाने की मनाही कर दी गई थी। चुनाव से पहले आंदोलनों में भी ओमप्रकाश को दूर रखा गया था।
इधर, सुषमा स्वराज की राजनीति का पारी खेलते हुए आगे बढ़ रही थी। 1979 में उन्हें जनता पार्टी ने हरियाणा का प्रवक्ता बनाया। किसी भी राजनीतिक पार्टी से पहली बार तब कोई महिला प्रवक्ता बनी थी। सुषमा ने अपना राजनीती में पहला कदम 1970 में एबीवीपी से जुड़कर शुरू किया था। पहला चुनाव 1977 में अंबाला कैंट से जनता पार्टी के टिकट पर लड़ा। 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार बनी, तो वो सूचना और प्रसारण मंत्रालय की कैबिनेट मिनिस्टर बनीं। 1998 में वाजपेयी सरकार से इस्तीफा देकर वो दिल्ली की पहली महिला सीएम बनी थीं। 2000 में उन्हें फिर सूचना और प्रसारण मंत्री बना दिया गया था।
2014 से 2019 तक वो विदेश मंत्री का पदभार संभालते हुये लोगों की मसीहा बन गई। जिसे स बात को हर की जानता है। 2019 में उन्होंने स्वास्थय कारणों के चलते ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया था।
निधन से कुछ देर पहले सुषमा ने जाधव के वकील से कहा था,’एक रुपया फीस ले जाओ’
6 अगस्त के दिन अचानक हुई सुषमा स्वराज की मौत से हर कोई हैरान है। उन्हीं में से एक ने जाधव के वकील हरीश साल्वे भी काफी स्तब्ध है क्योकि उन्होनें उस दिन कुछ समय पहले ही देर शाम बातचीत की थी। और इस बातचीत के बमुश्किल एक-डेढ़ घंटे बाद सुषमा के गुजर जाने की ख़बर आई।
वकील हरीश साल्वे ने बताया कि रात 8.50 के करीब मेरी सुषमा जी से बात हुई थी। उन्होंने कहा, तुम्हें मुझसे मिलने आना ही होगा। मुझे तुम्हें कुलभूषण जाधव केस की फीस का तुम्हारा एक रुपया देना है। सुषमा जी ने मुझे कल शाम 6 बजे मिलने बुलाया था.
6 अगस्त की देर शाम सुषमा स्वराज को जिस समय कार्डियक अरेस्ट आया। उस समय वो घर पर थीं, जहां से उन्हें AIIMS ले जाया गया। जहां कुछ समय के बाद डॉक्टरों से जानकारी मिली कि वो नहीं रहीं. मौत के करीब ढाई से तीन घंटे पहले सुषमा ने आर्टिकल 370 के लोकसभा में पास होने पर खुश होते हुए एक ट्वीट किया था। कि वो अपने जीवन में यही दिन देखने का इंतज़ार कर रही थीं।